नर्मदा परिक्रमा का महत्व को समझकर परिक्रमा करें

 


नर्मदे हर ... जिंदगी भर ... सबका भला कर 




*नर्मदा परिक्रमा का महत्व को समझ कर परिक्रमा करें*

" सारे तीर्थ बार बार, नर्मदा परिक्रमा एक बार "

🌺🌺🌺

"न अहम रहेगा, न वहम रहेगा,

मेरे तट पर आ, तू सिर्फ रेवा रेवा कहेगा ..."


🌺 नर्मदे हर 🌺


        सभी नर्मदा भक्त, सेवक, अन्नक्षेत्र संचालक, आश्रम तथा अन्य सभी नर्मदा भक्तों को प्रणाम। हम सब यह जानते है नर्मदा परिक्रमा सब करते है, रास्ते मे उनको सेवा मिलती है, दान-पुण्य, सेवा सब होता है। परंतु एक दुखद विषय है, आज के दिन मे नर्मदा परिक्रमा का महत्व धीरे धीरे कम हो रहा है। यह परिक्रमा कम ओर पिकनिक ज्यादा मनाया जा रहा है। लोगों मे भक्ति भाव कम और स्वार्थ तथा पर्यटन भाव ही ज्यादा दिख रहा है।

 

         सदियों ज़माने से चले आरहे इस आध्यात्मिक प्रथा को आज अलग रूप देकर परिक्रमा का दर्जा दी जा रही है। एक समय ऐसा था जब सिर्फ मुनी, ऋषी, तथा साधु-संथ, व साधारण व्यक्ती दैविक ओर आध्यात्मिक चिंतन के लिए परिक्रमा करते थे। वहां खड़ाऊ पहन कर य नंगे पाऊँ चलकर एक तपस्या की तरह परिक्रमा होतिथी। केवल दिन मे एक समय जो भी रुखा सूखा भोजन, फ़ल, सब्जी,जल मिलता था या सिर्फ 5 गृह से भिक्षा मांगकर सिर्फ उसी से अपना पेट के अग्नि को शांत करना, सिर्फ दैव चिंतन करना य जप,तप, मौन इत्यादी मार्गों से परिक्रमा पूर्ण करना होता था। वहाँ साधक केवल आध्यत्म चिंतन तथा तपस्या करने ही जाता था। अपने स्व-लाभ के य मुझे यह मिल जाए तो में परिक्रमा करूँगा कहके नही जाता था।

 

         परन्तु आज कुछ व्यक्ति सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए, कुछ व्यक्ति कुछ कमाई के लिए, कुछ व्यक्ति किसी के कहने पर कोई शास्त्र मे माहिर होने के स्वार्थ के लिए, कुछ प्रकृती के नजारों के लिए, कुछ केवल समय बिताने के लिए, ओर कुछ फोटो वीडियो बनाकर अपना आध्यात्मिक ज्ञान कम और पर्यटन ज्यादा का सुझाव देने के लिए, और सबसे ज्यादा कुछ व्यक्ती रेस लगाने के लिए, कितने संख्या मे परिक्रमा किए यह जताने के लिए परिक्रमा कर रहे है। बहुत ही अजीब है यह।

 

             *परिक्रमा का महत्व क्रीपया सब समझे। यह निस्वार्थ रूप से अपने आप को भगवान के चरणों मे समर्पण करते हुए, भूख-प्यास, इच्छाएँ, इत्यादी की त्याग करके निरंतर भगवत चिंतन मे रहकर हर एक तीर्थ स्थल को दर्शन करते हुए, उनके विशेषताओं को जानकर उचित कार्य करते हुए ,जंगल, झाड़ी, पर्वत, खेत, जल इत्यादी के सामना करते हुए, एकांत मे ध्यान करते हुए, दिन मे एक य दो बार जो भी भोजन य सामग्री मिले उन्हें प्रसाद समझ कर स्वीकार करते हुए आगे बढ़कर माँ नर्मदा जी के साथ साथ यहां के लाखों तीर्थ स्थलों का दर्शन करके मानव रूपी शरीर को अपने कर्म, कुकर्म, ग्रह पीड़ा से मुक्त करके सतचिन्तन, सदमार्ग मे रहने की उद्देश्य  मे करने वाला आध्यात्मिक परिक्रमा है।*

 

             *शिव पुराण के अनुसार मनुष्य अपने कर्म तथा पापों से मुक्त होनेके लिए एक नियम है। अपने आँखों से देखकर जो पाप होता है उसके लिए सर्वथा भगवद दर्शन करना है, कानों से किए पाप के लिए सर्वथा भगवद नाम सुनना है, वाणी से किए पाप के लिए सर्वथा भगवत नाम स्मरण करना है, हाथों से किए पाप के लिए भगवद नाम को जप करना है, पाऊँ तथा पैर से किए पापों के लिए भगवद य मंदिर परिक्रमा करना है। तथा शरीर ,मन ,बुद्धि से  किए पाप य कर्मों के लिए पैदल तीर्थ स्थलों का दर्शन करने जाकर उपरोक्त हर दैविक कार्य करना है।* और यही बात को हम अपने नर्मदा परिक्रमा मे भी समझना है। मनुष्य मात्र जाने अंजाने मे किसी भी प्रकार का गलत कार्य देखना, गलत शब्द सुनना, गलत शब्द बोलना, हाथ य पाऊँ से किसी भी प्राणी (चाहे सूक्ष्म क्यों न हो) का हानी करना, मन,शरीर,बुद्धि चिंता से कुकर्म मे लिप्त होजाता है। इन सब से मुक्त पाने तथा अपने आप को सदमार्ग मे लाने के लिए नर्मदा परिक्रमा एक उदाहरण है। इसका यह मतलब नही के परिक्रमा करते ही अपने कर्म य पाप नष्ट होजाएंगे। इसका मतलब है की हम भटके हुए रास्ते से सदमार्ग मे आकर बाकी के जीवन को अच्छा बनाएँ।

 

            *परंतु आज कल व्यक्ति परिक्रमा को पिकनिक के तरह कर रहे है। कहाँ भोजन मिलेगा, कोनसे जगह ज्यादा दान मिलेगा, कहाँ ताम-झाम की सुविधाएँ है, कहाँ पर एसो-आराम से रात को सो सकते है, मुझे यह नही खाना वो नही खाना, चाय, काफ़ी, दूध नही तो चलता नहीँ, मेरे घर य शहर आओ तो मलाई वाला दूध से चाय मिलेगा ऐसे बातों से सेवकों को दिल दुखाकर, रुकने वाले परिसर तथा उसके चारों ओर  को गंदा करके, झगड़े, चुटकुले, फ़ोटो,वीडियो लेते हुए, यूट्यूब की कमाई को मद्देनजर रखते हुए, परिक्रमा के नियमों के धज्जियां उड़ाकर खुद के नियमों से परिक्रमा करते है। यह बहुत दुःख का विषय है।*

 

आज तक आप सभी को नर्मदा, नर्मदा परिक्रमा यह केवल जानकरी दे रहा था। परंतु आज लोगों ने नर्मदा जी एवं नर्मदा परिक्रमा को हास्यास्पद कर दिया है। इस कारण आज में आप सब लोगोंको नर्मदा पुराण मे उल्लेख विविध सन्दर्भों द्वारा नर्मदा, नर्मदा पुराण, नर्मदा परिक्रमा का महत्व, एवं नर्मदा तट पर किए हुए अकृत्यों से क्या अनिष्ठ होता है यह जानकारी दे रहा हु। आशा करता हु आप इसे पढ़ें, एवं माँ नर्मदा, उनके महत्व एवं नर्मदा परिक्रमा का महत्व समझ कर अपने आप को एक सीमा मे रखने की कोशिश करें।

 

* क्या है माँ नर्मदा?

शिव जी के शरीर के स्वेद से उत्पन्न हुई एक कन्या, जिनके सौंदर्य के कारण देव- दानव मुग्ध होकर उन्हें पानेके लिए 1000 वर्ष लढने लगे, तब परमपिता परमेश्वर महादेव जी ने ऐसे कहा - "देव दानवों को शर्माने जैसे करके उन्हें नर्म (लज्जित/ शर्मिंदा) अदा करने वाली इस कन्या को नर्मदा नाम से नामित करके उन्हें मर्त्य लोक पर भेजें," तब से उन्हें नर्मदा नाम से संसार जानने लगा! (नर्मदा पुराण , अध्याय : 5)

 

अपने दस हजार वर्ष के तपस्या के बाद माँ नर्मदा ने महादेव जी से ऐसे वर पाए है - "नर्मदा कि उत्तर तट मे ब्रम्हा, इंद्र, चंद्र, वरुण, एवं श्री महाविष्णु निवास करेंगे। वही नर्मदा दक्षिण तट मे साक्षात में (शिव जी), पार्वती, पितृदेवता, एवं अन्य सभी देवताओं का निवास होगा। नर्मदा के दोनों तटों मे निवास करने वाले मनुष्य, वृक्ष -लताएं, प्राणी, यह सब अपने धर्माचरण के कारण मृत्य के बाद उत्तमलोक गमन करेंगे(नर्मदा पुरण, अध्याय -4, श्लो- 38 से 41)

 

इसलिए उत्तर तट देव भूमी ,दक्षिण तट राक्षस भूमी करते हुए कोई बोले तो वो वहम मे आप मत रहे। नर्मदा पुराण मे वर्णित श्लोकों के प्रमाण स्वरूप ही आपको जानकारी दे रहा हु। नर्मदा जी के दोनों तट अत्यंत पवित्र है, देवताओं का निवास स्थान है।

 

            नर्मदा शुभप्रदा है। वे देवताओं के द्वारा पूजित है। नर्मदा अक्षया, अमृता एवं स्वर्ग की सीढ़ी है। समस्त लोकों को संसार सागर से तारने के लिए पृथ्वी पर आई है। यहाँ स्नान, यह जल पान से पाप मुक्त होते है, मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त करते है। (नर्मदा पुराण, अध्याय- 9, श्लो- 46)

 

* क्यों करते है नर्मदा परिक्रमा?

केवल नर्मदा तट पर 60 करोड़ 60 हजार तीर्थ स्थित है(नर्मदा पुराण, अध्याय-21, श्लो-24 से 28). सागर तक अंत होने वाली धरती मे जितने पितृक्षेत्र है, तथा जिन क्षेत्रों मे पिंडदान आदि प्रदान करने से महाफल होता है, वो सब केवल नर्मदातीरस्थ तीर्थो मे पिंडदान करने से अक्षय फल देते है । नर्मदा तट पर ब्रम्हा, मुरारी, रुद्र तथा त्रिदेवियों का अवस्थित होता है(नर्मदा पुराण, अध्याय-146)

 

नर्मदा तट मे शिवाराधना, ध्यान करने वालोंको पुनर्जन्म नहीँ है। जो मनुष्य नित्य नर्मदा तट पर ध्यान, अर्चना, जप करके विष्णु एवं शिवाराधना करते है, वे संसार सागर से मुक्त हो जाएंगे। उन्हें पुनर्जन्म नही होता है(नर्मदा पुराण, अध्याय-10, श्लो-60 से 67)

 

            जो व्यक्ति नर्मदा तट पर निवास करते है, नर्मदा तट पर भ्रमण (व परिक्रमा) करते है, त्रिसंध्या मे देवतार्चना करते है, वे कभी भी मलमूत्र, चर्म, अस्थि, सिरा जनित शरीर नही पाएंगे। उनका पुनर्जन्म नही होगा (नर्मदा पुराण, अध्याय-10, श्लो-68 से 70)

 

नर्मदा तट मे तीर्थयात्रा, स्नान, भस्मलेपन, पूजा, जप करने से पापों का नाश होता है (नर्मदा पुराण, अध्याय-11, श्लो-11 से 27)

 

जो भूखा, प्यासा, दुःख कष्टों से पीड़ित, विघ्नों से घिरा हुआ मनुष्य भी नर्मदा का शरण लेकर उनमे स्नान , ध्यान, जप करता है, शिव, केशव की आराधना करता है वे सभी पीड़ाओं से मुक्त होता है(नर्मदा पुराण, अध्याय-11, श्लो-91 से 93)

 

त्रिलोक मे नर्मदा जल परम पवित्र है। निर्मदा तट पर नित्य यज्ञ याग होते रहते है, इसलिए नर्मदा किनारे कोई भी स्थान हो वो एक तीर्थ स्थल के समान है। नर्मदा के दोनों तटों मे देवता भी आराधना करते है। (नर्मदा पुराण, अध्याय-23, श्लो-7 से 9)

 

त्रिलोक मे अनेक श्रेष्ठ नदियां है, परंतु नर्मदा के समान अन्य कोई नदी नही है। जो नर्मदा जल मे स्नान, नर्मदा जल की प्रदक्षिणा (परिक्रमा) करते है, नर्मदा जल का पान करते है, उनके 15 जन्मों तक उत्तम संतान प्राप्त होगा, उनका वंश नाश नही होगा(नर्मदा पुराण, अध्याय-29, श्लो-36 से 37)

 

नर्मदा के तट पर अत्यंत सुंदर एवं पवित्र तीर्थों का माला है, जैसे पत्रेश्वर तीर्थ, अग्नी तीर्थ (आज का महेश्वर, मध्यप्रदेश), शुलभेद तीर्थ (शूलपाणी), लुंकेश्वर तीर्थ (शिव जी राक्षस से बचने के लिए जल मे छिप जाते है), हनुमंतेश्वर तीर्थ (हनुमान जी को ब्रम्हहत्या पाप से मुक्ति प्राप्त), रामेश्वर-लक्ष्मणेश्वर तीर्थ (राम - लक्ष्मण को ब्रम्हहत्या पाप से मुक्ति प्राप्त) , कुंभेश्वर तीर्थ (राम लक्षण जी के द्वारा एक शिव पिंडी मे दो शिवलिंग स्थापना कर तपस्या एवं कुंभाभिषेक किए गए स्थल)बदरी तीर्थ (जो बद्रीनाथ जाने का फ़ल यही दर्शन करने से प्राप्त होता है), स्कंद तीर्थ (स्कंद जी का तपस्थल), कुसुमेश्वर तीर्थ (काम देव ने शिव जी के द्वारा भस्म होने के पश्चात शिव लिंग स्थापित कर घोर तपस्या कर पुनः अपना शरीर प्राप्त किया हुआ स्थल), रोहिणी तीर्थ (पती-पत्नी को हमेशा जोड़कर रखने वाला तीर्थ), शक्र य इंद्र तीर्थ (इंद्र को श्राप के कारण उनके शरीर पर आए हुए हजारों योनियों से तपस्या के द्वारा मुक्त करने वाला तीर्थ), गंगावाहक तीर्थ (जो स्वयं गंगा जी के पाप को नर्मदा जल मे प्रवेश करने से उनके पाप दूर कर उन्हें पवित्र करती है), सुद्धेश्वर तीर्थ (शिव जी के ब्रम्हहत्या पाप को नष्ट करने वाला तीर्थ) , ऋणमोचन तीर्थ (जीव के सभी जन्मों के ऋणों से मुक्त करने वाला तीर्थ), इत्यादि 60 करोड़ 60 हजार तीर्थ स्तिथ  है, जिनमे से यह केवल नाम के लिए कुछ तीर्थों का नाम है

 

* मेरा विचार:

 इन सबका उल्लेख नर्मदा  पुराण मे है, परंतु कलियुग के प्रभाव से आज केवल 1 लाख तीर्थ ही मानव को दर्शन देते है। आज भी अनेक तीर्थ अपने आप जलमग्न हो रहे है, य दृष्टिगोचर नही हो रहे है।

 

   हम सब कुछ समय के अतिथी हैं। जो भी नर्मदा परिक्रमा करने जा रहे है, वे मन ध्यान से हर तीर्थ एवं घाट का दर्शन करें। हमे कलियुग मे उस स्थलपुराण की जानकारी न हो, पर नर्मदा जी के हर तट , हर एक कण एक तीर्थ स्थान है। नर्मदा तट एवं वहाँ के हर  एक तीर्थ रहस्यों से भरा है !

 

* तीर्थयात्रा कैसे करते है ?

मौनी रहकर तीर्थ सीमांत तक जाए, लेकिन जब तक तीर्थ सिमा का दर्शन न हो, तब तक तीर्थयात्री वाक संयमी रहे। (नर्मदा पुराण, अध्याय 75, श्लो- 16)  केवल एक वक्त भोजन, कम समय निद्रा, नित्य जप, ध्यान, ईश्वर चिंता, सौच, सुचि, शुभ्रता रखने वाला; काम, क्रोध, मद, मात्सल्य, लोभ इत्यादि विकारों पर संयम रखने वाला होना चाहिए !

 

* हमेशा मुझे लोग एक सवाल करते रहते है। मेरे बच्चे की शादी नहीं हो रही है, किसीकी नोकरी नहीं है, आर्थिक समस्या है, हमे ये दुःख है, वो तकलीफ है, वगेरा वगैरा। पर क्या यह शाश्वत है?

प्राणी मात्र से कर्म बंधन से जन्म लेता है। वह मनुष्य, पशु, पक्षी य चाहे कोई भी क्यो न हो , जैसे उसके कर्म है उसी रूपी बंधन से इस जन्म मे हर एक रिश्ते से जुड़ता है, एवं वैसे ही उसके पूर्व संचित कर्मो के कारण सुख, दुःख प्राप्त होता है। चाह कर भी उनसे मुक्ति नहीं मिलती जब तक वह खुद उसे पूर्ण रूप से न भोगे।  आदिगुरु शंकराचार्य जी ने कहा है "ऋणानुबंध रूपेण पति पत्नी शुतालया, ऋणक्षयं क्षये यांति तस्मात जागृत जागृत" - माता, पिता, पती, पत्नी, संतान, घर, इत्यादि अपने पूर्व जन्म के ऋण के कारण इस जन्म मे मिलते है। जब उनसे हमारे ऋण चुक्ति हो जाती है, उनसे हमारा बंधन टूट जाता है य उनसे हम दूर हो जाते है। प्राणी के कर्म उसके साथ सोते है, उसके साथ जागते है। उतना ही नहीँ, प्राणी जिस किसी वस्तु य व्यक्ति ,इत्यादी से ज्यादा मोहमाया मे फसता है, य प्यार करता है, उसी के कारण उसे ज्यादा दुःख प्राप्त होता है। इसलिए विषय वासना , मोहमाया ज्यादा मत करें। कुछ सीमा तक सब ठीक है, मांगते ही रहोगे तो तुम्हें बंधनो से छुटकारा कैसे मिलेगा?

 

इसके लिए एक ही अस्त्र है - " गतं न सोचामी कृतं स्मरामी - जो बीता उसे भूलकर, अभी जो हो रहा है उसपर ध्यान दें ! जो हुआ उसको सोचकर रोना मत, जो आनेवाला है उसके लिए ज्यादा अपेक्षा य आशा मत करो।" यह सभी अशाश्वत है। धन के लोभ मत करें, दान धर्म करते रहें। सुख हो दुःख हो या कस्ट हो उसे स्वीकार करते आगे बढ़ो, ईश्वर पर भरोसा रखो वो सब सभांल लेंगे। कलियुग केवल ध्यान एवं दान युग है। जितना आप ध्यान एवं यथा संभव दान करेंगे उतना आप पुण्य प्राप्त करेंगे ! अपने कमाई का 10 % आप दान कर सकते है यह शास्त्रोक्त नियम है। अपने अर्थिक स्थिती के अनुसार आप दान पुण्य करें।

 

* कैसे ब्राम्हण को दान देना है?

स्वयं ईश्वर ने उत्तानपाद से यह आख्या किए है। "बिना पढ़ी विद्या वाला विप्र, वेदरहित विप्र, रोगी, हीन (कम) अंग वाले, अतिरिक्त (ज्यादा उंगली इत्यादि) अंगों वाले, काने, पौनर्भव, अवकीर्ण, काले दांत वाले, सब कुछ खाने वाले, वृषली के पति, मित्रद्रोही, चुगलखोर, सोमविक्रेता, पराई निंदा करने वाला, पिता-माता तथा गुरु त्यागी, सदा ब्राम्हणों की निंदा करने वाला, मंत्रयुक्त शूद्रान्न खाने वाला, कर्मचाण्डाल ऐसे ब्राह्मण सदा अस्पृश्य है। इनको स्पर्श होते ही तत्काल स्नान करें। कुरूप नखवाले, वृषली, चोर, वार्धष्य, कुण्ड, गोलक, महादानग्राही, आत्महत्या के प्रयासी, वेतनभोगी, अध्यापक, नपुंसक, कन्यादुशक, अभिसप्तम ऐसे ब्राह्मणों का सदा त्याग करें। जो द्विज प्रतिग्रह मे प्राप्त धन से वाणिज्य करते है, जो समृद्ध हो उन्हें कदापि दान नहीं देना चाहिए" ! जो वेदाध्यायी, वृत्तिततपर, बिना लोभ का हो उसी ब्राह्मण को प्रदत्तदान अक्षयफलजनक होता है(नर्मदा पुराण, अध्याय-75, श्लो-3 से 13)

 

ईश्वर ने उत्तानपाद से यह सुंदर आख्या किए -"गृह में किंवा अरण्य अथवा तीर्थमार्ग मे जो अन्न, जल दान करता है, उसे यमलोक का दर्शन नही करना पड़ता। उसे अखिल दानफल की प्राप्ति होती है। जल-अन्न-अभय इन दानत्रय को सदा देते रहना चाहिए। विशेषतः अन्नदान जैसा कोई दान नहीं है(नर्मदा पुराण, अध्याय-75, श्लो-14-15)"

 

* मुझे लोग एक सवाल करते है, हमारा जप कब सफल होगा?

जिनको इन पांच चीजो पर ज्यादा इच्छा य आसक्ति न हो, तब उनके द्वारा की गई जप सफल होता है - 1) विषयभोग (सांसारिक विषयों पर उपभोग करने की इच्छा नहीं रहना है) , 2) निद्रा (केवल 5 से 7 घन्टे निद्रा ही करना है) , 3) हंसी (हर बात पर हास्यास्पद न होकर जहाँ जरूरी वहीँ हँसना सीखना है), 4) जगत्प्रीति (सांसार के सब प्राणी व घटनाएँ , यह मेरा है ऐसा भाव नही रहना है, कोई चीज पर ज्यादा मोह न रहना है), 5) ज्यादा बोलना (मित भाषी होना है)

 

    समय ऐसा था परिक्रमा वासियों को बहुत सन्मान मिलता था। अब कुछ स्थानों मे ऐसा माहोल आगया है, के परिक्रमा वासी गुजरते ही वहाँ के निवासियों को लगता है "देखो आगये फ़्री का खाने, पीने, अपने परिसरों मे गंदगी फैलाने।" यह कुछ व्यक्तियों के कारण पूरे परिक्रमा वासिओंको दोषी ठहराते है। मेने खुद जब अपने परिक्रमा के दौरान शूलपाणी झाड़ी, अमरकंटक जंगल मार्ग से गुजरते हुए वहाँ के मूल निवासियों से संपर्क मे आकर बात करने के दौरान वे यह चिंता ओर परिक्रमा वासियों के प्रति अपना भाव व्यक्त किए। कुछ विशेष राज्य, तथा शहर, य स्थान के व्यक्तियों के ऊपर वे आरोप करते है। कुछ स्वार्थ, अकल के अंधो से हुई गलतियों के कारण पूरे परिक्रमा वासिओंको दोषी ठहराया जाता है। क्रीपया इस विषय का ध्यान दें।

 

        मेरा किसी व्यक्ती, समुदाय, राज्य, तथा अन्य व्यक्तियों से विवाद नहीं है। मुझे आप सभीको इतना बताना है, की परिक्रमा का महत्व समझें, फिर परिक्रमा करें। अन्यथा धीरे-धीरे नर्मदा परिक्रमा का महत्व संपूर्ण रूप से मिट जाएगा। नर्मदा क्षेत्रों मे परिक्रमा वासी एक कलंक बनकर न रहे बल्कि एक साधुवाद, आध्यात्मिक चिंतन का परिचय दे।

 

* केवल तीर्थस्नान, यात्रा, प्रसाद पाने से ही व्यक्ति के पाप नही जाते-

किसीभी व्यक्ति को केवल तीर्थस्नान, यात्रा, प्रसाद पाने से ही उनके पाप नही जाते है। उनमे श्रद्धा एवं भक्ति होना चाहिए, जप एवं ध्यान करना चाहिए ! (नर्मदा पुराण, अध्याय-11, श्लो-40 से 42) जिनका अंतःकरण सुद्धि न हो वे 100 वर्ष तक वेद पठन करने , नाना प्रकार के मंत्र जाप करने से भी कोई फल नहीं है। (नर्मदा पुराण, अध्याय-11, श्लो-65 से 69)

 

कुछ परिक्रमावासी सुबह उठते ही बिना स्नान किए रात्री पहने हुए वस्त्रों से सुबह सुबह परिक्रमा मे भागते रहते है। वही कापडों से मंदिर मे प्रवेश करते है, न सुची रहती है न शौच। अगर उन्हें रोक टोक किए य समझाए तो बहुत बुरा बर्ताव करते है। उनके लिए एक श्लोक मे ऐसा वर्णन है जो व्यक्ति सत्य, शौच के साथ धर्मात्मा, जितात्मा होता है, वही नर्मदा तट के तीर्थों का फल पाता है, पापियों के लिए नर्मदा तट नहीँ है। वही शास्त्र सिद्धांत है। (नर्मदा पुराण, अध्याय-32, श्लो- 10 से 11)

 

* परिक्रमा के दौरान परिक्रमावासी मंदिर, आश्रम, अन्नक्षेत्र, य किसी व्यक्ति विशेष के घर पर फूल, पौधे, पत्र, फ़ल, बीज, सब्जी, इत्यादि तोड़ लेते है, उसका क्या परिणाम होगा?

मन को दुःख देने वाली एक ओर बात है, जो बहुत से परिक्रमावासिओं से जाने अंजाने हो रहा है। परिक्रमा के दौरान कुछ परिक्रमावासी जो मंदिर, आश्रम, अन्नक्षेत्र, य किसी व्यक्ति विशेष के घर पर रहते है, वे बे धड़क वहाँ के फूल, पौधे, पत्र, फ़ल, बीज, सब्जी, इत्यादि तोड़ लेते है, किसी के इजाजत के बगैर किए गए इस कार्य को "चोरी" कहा जाएगा। बहुत जगहों पर जाली य कांटो से रक्षण प्रहरी बनाने के बावजूद कुछ परिक्रमा वासी उसे तोड़कर भी अंदर जाकर सब नष्ट कर रहे है। यह बहुत ही निंदनीय है। विशेषतः महिला परिक्रमावासिओं ने फूल तोड़ना करने के कारण सभी मंदिर, आश्रम, अन्नक्षेत्रों मे परिक्रमावासिओं के इस हरकत का शिकायत हो रहा है, के वे परिसर मे बाग बगीचे नष्ट करते है। यह आप के लिए शोभदायक नही है एवं इसका प्रभाव भी बहुत बुरा है।

 

         जो व्यक्ति अपने नित्य जीवन मे मंदिर, आश्रम, अन्नक्षेत्र व बाग बगीचे मे किसीके अनुमती के बिना कुछ भी फूल, पौधे, पत्र, फ़ल, बीज, सब्जी, इत्यादि तोड़ लेते है, वे अपने आगामी जन्म मे निश्चय रूप से नपुंसक रूप से जन्म लेते है। (स्कंद पुराण, एवं गरुड़ पुराण) । वैसे अगर वह व्यक्ति कोई तीर्थ यात्रा कर रहा हो , एवं वह ऐसे फूल, पौधे, पत्र, फ़ल, बीज, सब्जी, इत्यादि तोड़ लेते है, तो उसे घोर पाप लगता है। (नर्मदा परिक्रमा पूर्ण रूप से पवित्र तीर्थ यात्रा ही है, अगर परिक्रमा करते समय कोई ऐसे कार्य करता है तो क्या होगा)। वैसे व्यक्ति 100 जन्म तक उस मंदिर, अन्नक्षेत्र, आश्रम परिसर मे कुत्ते, एवं सूवर के योनि मे जन्म लेकर उन परिसरों मे मल,मूत्र आदि का सेवन करते हुए दुःख पाएंगे। उतना ही नहीँ, अगर वह स्त्री है तो इस जन्म मे उनको जल्दी वैधव्य (विधवा) प्राप्त होगी, उनके वंश मे आगामी पीढ़ी मंद बुद्धि वाले होंगे। पुरुषों के घर परिवार मे अशांती बना रहेगा। नाना प्रकार के रोगों से सय्या पर पड़े रहेंगें (गरुड़ पुराण एवं शिव पुराण)!

 

     शिव पुराण के अनुसार मंदिर, आश्रम, अन्नक्षेत्र बाग इत्यादी मे जो भी फूल, पौधे, पत्र, फ़ल, बीज, सब्जी, इत्यादि है, वह केवल उस स्थान के देवता के लिए ही है। उन्हें बाहर वाले न तोड़ सकते है, नाहीं उससे पूजा कर सकते है। इस से हमें उपरोक्त घोर पाप लगता है। यदी अबतक आप ऐसे कार्य परिक्रमा के दौरान किए हो तो वह अज्ञान के कारण हुआ होगा, पर उसका फल हमें भोगना ही पड़ेगा। क्योंके जाने अंजाने जो भी पाप किए होते है उस कर्म का फ़ल जीव को भोगना ही पड़ता है। अतैव आप माँ नर्मदा जी से इस पाप की मुक्ति का प्रार्थना करें।

     ऐसे हमारे द्वारा अगर कोई भी अकृत्य हुआ हो तो उसका निवारण कुछ इस प्रकार हो सकता है। हम जो मंदिर, आश्रम, अन्नक्षेत्र, बाग इत्यादि मे कुछ तोड़े है, वहाँ जाकर पुण्य तिथियों मे वैसे ही वृक्ष इत्यादि को वृक्षारोपण करते है, तो हमारे पाप कम होते जाएंगे। परंतु यह आजीवन करना है, एवं वहाँ हम वृक्षारोपण करते समय हमने यहाँ ऐसे कार्य किए थे उसके लिए माफ करें, यह कहते हुए करना उत्तम है। (शिव पुराण)!


* मेरा अनुरोध है-

नर्मदा खंड एवं परिक्रमा को व्यापार का क्षेत्र न बनाएं। यूट्यूब पर चेनल बना कर पैसे कमाने का जरिया नहीँ है! नर्मदा परिक्रमा लग्जरी बस मे करने वाली, उत्तम व्यवस्था मे रहने वाली, 3 समय भोजन खाने वाली पिकनिक नहीं है। यात्रा गाड़ी मे बुजर्ग, रोगी, बाल य शिशु, जो शारीरिक अक्षम व्यक्ति हो, जिनका समय बहुत अभाव हो, वे सब कर सकते है। एक रुपए पर चवन्नी का फायदा योग्य है पर एक रुपए पर एक य उस से अधिक रुपए का फायदा वो भी नर्मदा के नाम पर नर्मदा परिक्रमा के नाम पर बहुत विचार योग्य है। पर कमाई का फायदा भी आध्यात्मिक यात्रा से न जोड़ें जिनसे आपको पीढ़ी दर पीढ़ी पाप का गठरी लेकर जाना पड़े।

 

मेने ऐसे भी परिक्रमावासिओं को देखा है, जो समय पर भोजन, उत्तम व्यवस्था, सुख सुविधा के लिए अन्नक्षेत्रों व आश्रमों मे झगड़ा करते है। वहाँ कोई सेवा देता है य नहीँ यह जानकारी भी नही लेते है। कैसे परिस्थितियों मे वे सेवा करते है यह भी नही जानते है। उन क्षेत्रों मे पूर्ण गंदगी फैलाते है। रात के बिछाए हुए गद्दे तक नहीं उठाते है। अगर गद्दे उठा भी लिए तो उस परिसर को झाड़ू भी नही लगाते है। कूड़ा, कचरा, इधर उधर फेंकते है। कुछ तो ऐसे भी होते है जो परिक्रमा मे भी अलग अलग पार्टी के नाम से परिचय करवाते है, सुख सुविधा के लिए अलग अलग संघ एवं संघटनों के नाम का व्यवहार करते है। परिक्रमा मे आपको संत की आख्या दी जाती है, वहां ऐसे व्यवहार शोभा नही देता है। उन सभी से एक ही कहना है अन्नक्षेत्र एवं आश्रम के सेवक आपके जागीर नहीँ है। वे सेवा करते है उसका मतलब यह नहीं के आपके अकृत्य भी सहना है। आप एक आध्यात्मिक यात्रा पर जा रहे हो, वातावरण भी वैसे ही रखें। खुद उन जगहों पर सेवा करें ताकी आपके बाद आपको सब याद करेंगे, आपके जाने के बाद अन्य परिक्रमावासिओं को कोई दोषारोपण न करें। आप परिक्रमा मे जाती, वर्ण, लिंग के अतिरिक्त केवल मानव के रूप ही माने जाते हो। मानवता, सेवा भाव, भक्ति, मन, वचन, कर्म यह त्रिकरण सुद्धि लाएं एवं सहन शीलता अपने अंदर लाएं। आपके व्यवहार ही नर्मदा तट पर आपका मान दंड है। परिक्रमा एक साधना है। मनुष्य अपने संचित एवं प्रारब्ध कर्मों को नर्मदा तट पर स्वयं सुधार कर अपने आगामी कर्मों को सुधारने का एक मौका है। इसे पवित्र ही रहने दीजिए।

 

हम हर साल परिक्रमावासिओं के सेवा करने के लिए अन्नक्षेत्रों मे सहयोग करने के लिए बहुत अनुरोध करते है। पूरे नर्मदा खंड मे नहीँ पर गिने चुने 10 -15 अन्नक्षेत्र जो बहुत गरीब व्यक्तियों द्वारा चलाया जाता है उनको सेवा करने के लिए कहते है। पर 100 जन को बोलते है तो कोई 2 व्यक्ति सेवा करने आगे बढ़ते है। कोई बात नहीं कोई 2 जन को तो हम सेवा के लिए प्रेरणा दे पा रहे हैं। बाकी के 98 लोगों मे 90 लोग परिक्रमा कर चुके होते है, पर वो कभी आगे नहीं बढें है। आश्चर्य है। वे खुद बोलते है, नर्मदा खुद संभालेगी। हाँ। यह सच है नर्मदा खुद संभालेगी। अगर हर कोई ऐसे ही बोलेगा, तो वो दिन भी दूर नहीं है जब नर्मदा खंड मे परिक्रमा करने जाओगे तो लोग हमें दौड़ा दौड़ा कर भगाएंगे, यह कह कर मुफ्त का खाने के लिए आगए हैं। लेकिन आज भी कुछ भक्त ऐसे है, जो अपने तन मन से नर्मदा परिक्रमावासिओं की सेवा कर रहे है। शायद इसीलिए आज भी परिक्रमावासी भूखा नहीँ सो रहा हैजो भी नर्मदा परिक्रमा किया है, उसको नर्मदा खंड के नमक का कर्ज अदा करना ही पड़ेगा। चाहे आप मानो य न मानों। हमे भोजन खिलाने वालों के कर्म हम ले कर बोझ ले रहे है अपने सिर पर। उसको हल्का करलो वक्त रहते अन्नक्षेत्र मे अन्नदान के सेवा मे सहयोग करते हुए। क्या पता किस रूप मे नारायण एवं शिव आपके भाग का अन्न पाकर आपके कर्मों को काट कर उत्तम गती कब दे दें।

 

आज भी बहुत आश्रम य अन्नक्षेत्र मे ही शौचालय निर्माण क्यो नही हो पाया ? अगर वहाँ आर्थिक दिक्कत है तो हम जैसे कुछ सेवक आगे बढ़कर शौचालय निर्माण करने की इच्छा रखें तो गंदगी नर्मदा तट पर क्यो होगा ? हम सब केवल दोष परिक्रमावासिओं पर क्यों डालें ? सेवा और सच्चे सेवकों की अभाव से ही आज नर्मदा खंड मे गंदगी फैल रही है। सब एक दूसरे पे आरोपण करते है, क्योंकि आरोपण करना बहुत सस्ता है। ये आरोप करने वाले खुद अगर गंदगी दूर करने का संकल्प लेकर आगे बढ़ेंगे, तो हर आश्रम पर एक शौचालय बन सकता है। पर कोई नही करता। पर 100 जन को बोलते है तो कोई 2 व्यक्ति सेवा करने आगे बढ़ते है। क्योंके बाकी सबके पास वक्त, सेवा के लिए धन की कमी, य केवल बहाना बनाना है। पर दूसरों के लिए आरोपण करने जरूर आगे बढ़ते है। यह सत्य है।

 

* जिनकी श्रद्धा नही है उनको कोई भी कार्य मे सफलता नही मिलती -

“84 लाख योनियों के चक्कर काटने के बाद मानव शरीर मिलता है, लेकिन उनमे से केवल कुछ लोगों को ही शिव भक्ति प्राप्त होती है । शिवकृपा केवल श्रद्धा से प्राप्त होती है, एवं जिनकी श्रद्धा नही है उनको कोई भी कार्य मे सफलता नही मिलती है। जिनमे भक्ति है उनका जीवन सफल है। (नर्मदा पुराण, अध्याय-11, श्लो-7 से 9)

जिनकी श्रद्धा नही है, मूर्ख है, दंभी है, दूसरों को दुःख देते है, शास्त्र विरुद्ध बोलना , व धनार्जन करते है, वे कभी सुखी नहीं रहेंगे। (नर्मदा पुराण, अध्याय-11, श्लो-38)

 

* नर्मदा तट पर अकृत्य करने वालों को क्या परिणाम है?

शिव जी की कृपा से नर्मदा जी के दोनों तटों को लाख लाख शिवलिंग , रुद्र गण, सिद्ध पुरुष, एवं ओंकार हमेशा रक्षा करते रहते है। इसलिए कोई भी मनुष्य अन्य कोई भी तीर्थ मे कोई भी पाप करें, वे नर्मदा तट पर स्नान करने से क्षय हो जाते है। लेकिन नर्मदा तट पर आकर कोई भी मनुष्य कोई भी पाप करे , वो वज्रलेख  के समान कठिन हो जाएंगे, एवं उसे लाखों जन्मों तक पीछा नही छोड़ेंगे। (नर्मदा पुराण, अध्याय-29, श्लो-47 से 48)

 

        अफसोस के साथ एक यह भी बताना जरूरी है, की आज कल कुछ छल, धोखाधड़ी, बेईमान प्रवृत्ति के व्यक्ति भी नर्मदा जी के तट पर अन्नक्षेत्र, आश्रम बनाने के नाम पर, सेवा के नाम पर लोगों को एवं नर्मदा भक्तों को धोखा दे कर उनसे धनराशी लेकर न सेवा करते है, न परिक्रमावासिओं के सेवा कार्य मे विनियोग करते है। कुछ व्यक्ति अपने व्यसन, लालच, धन इकट्ठा करने के आशा से माँ नर्मदा के नाम पर दिए गए धन, व्सतु, आभूषण इत्यादी खुद हड़प कर भाग जाते है, कुछ डम्बोक्ति दिखाकर उल्टे आरोप लगाते है, अन्य कुछ व्यक्ति सेवा के नाम पर बहुत बत्तर तरीके से परिक्रमावासिओं से व्यवहार करते है, बहुत ही बेकार भोजन देते है, जो जानवर भी शायद न खाएं। बस आप ऐसे लोगों से चौकन्ना रहे। अनुभवी सेवक, संत, साधू को ही सेवा करें। अंजान व्यक्ति, संस्थाएं, संघो से दूर रहे। ऑनलाइन मे कोई लेनदेन करने से पहले किसे भेज रहे है, उसकी पहचान क्या है, जिसे भेज रहे है वह व्यक्ति ओर सेवक एक ही है य नही यह सब अच्छे से देख परख कर ही आगे बढें। ऐसे लोगों के कारण अच्छी सेवा करने वाले सच्चे सेवकों को भी निंदा अपमान सहना पड़ रहा है। एक साथ एक आश्रम मे 100 से अधिक परिक्रमा वासी आएं तो कैसे वो लोग कम सहयोग राशी से सेवा कर रहे है, आर्थिक स्थिती अस्थिरता के बावजूद वे ब्याज पर भी धन लाकर केवल माँ नर्मदा जी के लिए परिक्रमावासिओं को भोजन करवाते है। ऐसे सेवकों को कोटी नमन। ऐसे निस्वार्थ सेवकों को देखकर अगर छल प्रवुत्ती के लोग नहीँ बदलेंगे तो निश्चित रूप से उनके पापों हिसाब माँ नर्मदा जल्द ही करेंगी

 

नर्मदा एक सीमा तक सब सहती है, उसकी सिमा पार करने से वह अपना प्रलयकारी रूप दिखाती है। अच्छे आछो को अपने से दूर कर देती है, राजा को प्रजा एवं अहंकारी के अहंकार नाश कर देती है। वरना वो माँ है, किसीसे उनको क्या दुश्मनी? अपने कर्म ही हमें उनसे अलग कर देती है। अपने सीने पर हाथ रख कर अंतः करण करके देखें आपको खुद पता चलेगा आपने नर्मदा य नर्मदा खंड मे कोई ऐसे कृत्य नही किए? जिस कारण आपको उनसे दूर होना पड़ा ? य नर्मदा जी खुद दूर हो गई हो? य आजके दुरवस्था का कारण क्या है? हमारे सभी कर्मों का हिसाब होगा, देर सही पर शक्त ही होगा, जो न आप न हम निवारण कर सकते है।

 

प्रकृति, पवन, जल, अग्नि, अंतरिक्ष, धरती माँ यह सभी ईश्वर के अंग है, अस्त्र है। इन्हें जो भी छेड़ेगा उसको मूल्य चुकाना ही पड़ेगा !

 

इसलिए नर्मदा भक्तों आप परिक्रमा कैसे करेंगे नर्मदा मैया को एवं नर्मदा तट के बारेमे कैसे सोच रख कर जाते हो वह आप पर है ! नर्मदा पुराण मे उल्लेख नियमों के साथ मेने आपको चेतावनी एवं जानकारी दी है ! आप कितने परिक्रमा कर रहे हो वह संख्या नहीं बल्कि आपके एक भी परिक्रमा हो उसकी गुणवत्ता मायने रखता है।

 

     आशा करता हूं मेरा यह उद्देश्य आप सबको जागृत करे, परिक्रमा का महत्व समझ कर अपनों को ओर मित्रों को उचित जानकारी दें।


      आपका,     

   रवि कुमार

                                                                                                          


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