नर्मदा परिक्रमा (पैदल परिक्रमा) करने के नियम - (Hindi )
नर्मदा परिक्रमा (पैदल परिक्रमा) करने के नियम
" सारे तीर्थ बार बार, नर्मदा परिक्रमा एक बार "
🌺🌺🌺
"न अहम रहेगा, न वहम रहेगा,
मेरे तट पर आ, तू सिर्फ रेवा रेवा कहेगा ..."
मुझे बहुत से व्यक्तिओंने
व्यक्तिगत रूपसे फ़ोन पर, व्हाट्सएप्प तथा फेसबुक पर
नर्मदा परिक्रमा करने की नियम बताने बोले है। उनसबके इच्छा से ओर भी बहुत नए
व्यक्ति जो परिक्रमा करना चाहते है ओर उसके नियम जानकारी लेना चाहते है, उनके लिए में अपने पैदल
परिक्रमा के अनुभव तथा जितने नियम हमको बताया गया है वह आप सभी से शेयर कर रहा
हूं। इनमे जो नियम मेने बताया है वह सब मुझे पूछे हुए प्रश्नो के आधार पर मेने
बनाया है। इसमें कुल 31 नियम मेने आपलोगोंको बताया
है। होसकता है मेरे द्वारा बताए गए कुछ नियम अन्य व्यक्तियों के नियम से थोड़ा अलग
हो, लेकिन थोड़ा फर्क रहनेसे भी
जो नियम में जानता हूं, सुना हुँ, पालन किया हुँ, वही आप सभी को बता रहा
हूँ। कृपया कोई व्यक्ती मेरे कुछ टिप्पणियों को व्यक्तीगत रूप से न लें। आप सभी की
नर्मदा परिक्रमा यात्रा मंगलमय हो। माँ रेवा आपकी यात्रा अविघ्न रूप से पूर्ण करें, आपको तथा आपके परिवार की
कल्याण करें।
*नर्मदा परिक्रमा का महत्व को समझ कर परिक्रमा करें*
🌺 नर्मदे हर 🌺
सभी नर्मदा भक्त, सेवक, अन्नक्षेत्र संचालक, आश्रम तथा अन्य सभी नर्मदा भक्तों को प्रणाम। हम सब यह जानते है नर्मदा परिक्रमा सब करते है, रास्ते मे उनको सेवा मिलती है, दान-पुण्य, सेवा सब होता है। परंतु एक दुखद विषय है, आज के दिन मे नर्मदा परिक्रमा का महत्व धीरे धीरे कम हो रहा है। यह परिक्रमा कम ओर पिकनिक ज्यादा मनाया जा रहा है। लोगों मे भक्ति भाव कम और स्वार्थ तथा पर्यटन भाव ही ज्यादा दिख रहा है।
सदियों ज़माने से चले आरहे इस
आध्यात्मिक प्रथा को आज अलग रूप देकर परिक्रमा का दर्जा दी जा रही है। एक समय ऐसा
था जब सिर्फ मुनी, ऋषी, तथा
साधु-संथ, व साधारण
व्यक्ती दैविक ओर आध्यात्मिक चिंतन के लिए परिक्रमा करते थे। वहां खड़ाऊ पहन कर य
नंगे पाऊँ चलकर एक तपस्या की तरह परिक्रमा होतिथी। केवल दिन मे एक समय जो भी रुखा
सूखा भोजन, फ़ल, सब्जी,जल मिलता
था या सिर्फ 5 गृह से
भिक्षा मांगकर सिर्फ उसी से अपना पेट के अग्नि को शांत करना, सिर्फ दैव
चिंतन करना य जप,तप, मौन
इत्यादी मार्गों से परिक्रमा पूर्ण करना होता था। वहाँ साधक केवल आध्यत्म चिंतन
तथा तपस्या करने ही जाता था। अपने स्व-लाभ के य मुझे यह मिल जाए तो में परिक्रमा
करूँगा कहके नही जाता था।
परन्तु आज कुछ व्यक्ति सिर्फ अपने
स्वार्थ के लिए, कुछ
व्यक्ति कुछ कमाई के लिए,
कुछ
व्यक्ति किसी के कहने पर कोई शास्त्र मे माहिर होने के स्वार्थ के लिए, कुछ
प्रकृती के नजारों के लिए,
कुछ
केवल समय बिताने के लिए,
ओर
कुछ फोटो वीडियो बनाकर अपना आध्यात्मिक ज्ञान कम और पर्यटन ज्यादा का सुझाव देने
के लिए, और सबसे
ज्यादा कुछ व्यक्ती रेस लगाने के लिए, कितने संख्या मे परिक्रमा किए यह जताने के
लिए परिक्रमा कर रहे है। बहुत ही अजीब है यह।
*परिक्रमा का महत्व क्रीपया सब समझे। यह निस्वार्थ
रूप से अपने आप को भगवान के चरणों मे समर्पण करते हुए, भूख-प्यास, इच्छाएँ, इत्यादी की त्याग
करके निरंतर भगवत चिंतन मे रहकर हर एक तीर्थ स्थल को दर्शन करते हुए, उनके विशेषताओं
को जानकर उचित कार्य करते हुए ,जंगल, झाड़ी, पर्वत, खेत, जल इत्यादी के सामना करते हुए, एकांत मे ध्यान
करते हुए, दिन मे एक य दो
बार जो भी भोजन य सामग्री मिले उन्हें प्रसाद समझ कर स्वीकार करते हुए आगे बढ़कर
माँ नर्मदा जी के साथ साथ यहां के लाखों तीर्थ स्थलों का दर्शन करके मानव रूपी
शरीर को अपने कर्म, कुकर्म, ग्रह पीड़ा से
मुक्त करके सतचिन्तन, सदमार्ग मे
रहने की उद्देश्य मे करने वाला आध्यात्मिक
परिक्रमा है।*
*शिव पुराण के अनुसार मनुष्य अपने कर्म तथा पापों
से मुक्त होनेके लिए एक नियम है। अपने आँखों से देखकर जो पाप होता है उसके लिए
सर्वथा भगवद दर्शन करना है, कानों से किए पाप के लिए सर्वथा भगवद नाम सुनना है, वाणी से किए
पाप के लिए सर्वथा भगवत नाम स्मरण करना है, हाथों से किए पाप के लिए भगवद नाम को जप करना है, पाऊँ तथा पैर
से किए पापों के लिए भगवद य मंदिर परिक्रमा करना है। तथा शरीर ,मन ,बुद्धि से किए पाप य कर्मों के लिए पैदल तीर्थ स्थलों का
दर्शन करने जाकर उपरोक्त हर दैविक कार्य करना है।* और यही
बात को हम अपने नर्मदा परिक्रमा मे भी समझना है। मनुष्य मात्र जाने अंजाने मे किसी
भी प्रकार का गलत कार्य देखना, गलत शब्द सुनना, गलत शब्द
बोलना, हाथ य पाऊँ
से किसी भी प्राणी (चाहे सूक्ष्म क्यों न हो) का हानी करना, मन,शरीर,बुद्धि
चिंता से कुकर्म मे लिप्त होजाता है। इन सब से मुक्त पाने तथा अपने आप को सदमार्ग
मे लाने के लिए नर्मदा परिक्रमा एक उदाहरण है। इसका यह मतलब नही के परिक्रमा करते
ही अपने कर्म य पाप नष्ट होजाएंगे। इसका मतलब है की हम भटके हुए रास्ते से सदमार्ग
मे आकर बाकी के जीवन को अच्छा बनाएँ।
*परंतु आज कल
व्यक्ति परिक्रमा को पिकनिक के तरह कर रहे है। कहाँ भोजन मिलेगा, कोनसे जगह
ज्यादा दान मिलेगा, कहाँ ताम-झाम
की सुविधाएँ है, कहाँ पर
एसो-आराम से रात को सो सकते है, मुझे यह नही खाना वो नही खाना, चाय, काफ़ी, दूध नही तो
चलता नहीँ, मेरे घर य शहर
आओ तो मलाई वाला दूध से चाय मिलेगा ऐसे बातों से सेवकों को दिल दुखाकर, रुकने वाले
परिसर तथा उसके चारों ओर को गंदा करके, झगड़े, चुटकुले, फ़ोटो,वीडियो लेते
हुए, यूट्यूब की
कमाई को मद्देनजर रखते हुए, परिक्रमा के नियमों के धज्जियां उड़ाकर खुद के नियमों से
परिक्रमा करते है। यह बहुत दुःख का विषय है।*
आज तक आप सभी को नर्मदा, नर्मदा
परिक्रमा यह केवल जानकरी दे रहा था। परंतु आज लोगों ने नर्मदा जी एवं नर्मदा
परिक्रमा को हास्यास्पद कर दिया है। इस कारण आज में आप सब लोगोंको नर्मदा पुराण मे
उल्लेख विविध सन्दर्भों द्वारा नर्मदा, नर्मदा पुराण, नर्मदा परिक्रमा का महत्व, एवं नर्मदा तट
पर किए हुए अकृत्यों से क्या अनिष्ठ होता है यह जानकारी दे रहा हु। आशा करता हु आप
इसे पढ़ें, एवं माँ नर्मदा, उनके महत्व एवं
नर्मदा परिक्रमा का महत्व समझ कर अपने आप को एक सीमा मे रखने की कोशिश करें।
* क्या है
माँ नर्मदा?
शिव जी के शरीर के स्वेद से उत्पन्न हुई एक
कन्या, जिनके
सौंदर्य के कारण देव- दानव मुग्ध होकर उन्हें पानेके लिए 1000 वर्ष लढने
लगे, तब परमपिता
परमेश्वर महादेव जी ने ऐसे कहा - "देव दानवों को शर्माने जैसे करके उन्हें
नर्म (लज्जित/ शर्मिंदा) अदा करने वाली इस कन्या को नर्मदा नाम से नामित करके
उन्हें मर्त्य लोक पर भेजें," तब से
उन्हें नर्मदा नाम से संसार जानने लगा! (नर्मदा
पुराण , अध्याय : 5)
अपने दस हजार वर्ष के तपस्या के बाद माँ
नर्मदा ने महादेव जी से ऐसे वर पाए है - "नर्मदा
कि उत्तर तट मे ब्रम्हा, इंद्र, चंद्र, वरुण, एवं श्री
महाविष्णु निवास करेंगे। वही नर्मदा दक्षिण तट मे साक्षात में (शिव जी), पार्वती, पितृदेवता, एवं अन्य सभी
देवताओं का निवास होगा। नर्मदा के दोनों तटों मे निवास करने वाले मनुष्य, वृक्ष -लताएं, प्राणी, यह सब अपने
धर्माचरण के कारण मृत्य के बाद उत्तमलोक गमन करेंगे। (नर्मदा पुरण, अध्याय -4, श्लो- 38 से 41) ।
इसलिए उत्तर तट देव भूमी ,दक्षिण तट
राक्षस भूमी करते हुए कोई बोले तो वो वहम मे आप मत रहे। नर्मदा पुराण मे वर्णित
श्लोकों के प्रमाण स्वरूप ही आपको जानकारी दे रहा हु। नर्मदा जी के
दोनों तट अत्यंत पवित्र है, देवताओं का निवास स्थान है।
नर्मदा
शुभप्रदा है। वे देवताओं के द्वारा पूजित है। नर्मदा अक्षया, अमृता एवं
स्वर्ग की सीढ़ी है। समस्त लोकों को संसार सागर से तारने के लिए
पृथ्वी पर आई है। यहाँ स्नान, यह जल पान से पाप मुक्त होते है, मृत्यु के बाद
मोक्ष प्राप्त करते है। (नर्मदा पुराण, अध्याय- 9, श्लो- 46)
* क्यों करते
है नर्मदा परिक्रमा?
केवल नर्मदा तट पर 60 करोड़ 60 हजार तीर्थ
स्थित है। (नर्मदा
पुराण, अध्याय-21, श्लो-24 से 28). सागर तक अंत होने वाली धरती मे जितने
पितृक्षेत्र है, तथा जिन
क्षेत्रों मे पिंडदान आदि प्रदान करने से महाफल होता है, वो सब केवल
नर्मदातीरस्थ तीर्थो मे पिंडदान करने से अक्षय फल देते है । नर्मदा तट पर
ब्रम्हा, मुरारी, रुद्र तथा
त्रिदेवियों का अवस्थित होता है। (नर्मदा
पुराण, अध्याय-146)
नर्मदा तट मे शिवाराधना, ध्यान करने
वालोंको पुनर्जन्म नहीँ है। जो मनुष्य नित्य नर्मदा तट पर ध्यान, अर्चना, जप करके विष्णु
एवं शिवाराधना करते है, वे संसार सागर
से मुक्त हो जाएंगे। उन्हें पुनर्जन्म नही होता है। (नर्मदा
पुराण, अध्याय-10, श्लो-60 से 67)
जो व्यक्ति
नर्मदा तट पर निवास करते है, नर्मदा तट पर भ्रमण (व परिक्रमा) करते है, त्रिसंध्या
मे देवतार्चना करते है,
वे
कभी भी मलमूत्र, चर्म, अस्थि, सिरा जनित
शरीर नही पाएंगे। उनका पुनर्जन्म नही होगा (नर्मदा
पुराण, अध्याय-10, श्लो-68 से 70)
नर्मदा तट मे तीर्थयात्रा, स्नान, भस्मलेपन, पूजा, जप करने से
पापों का नाश होता है (नर्मदा पुराण, अध्याय-11, श्लो-11 से 27)
जो भूखा, प्यासा, दुःख कष्टों से पीड़ित, विघ्नों से
घिरा हुआ मनुष्य भी नर्मदा का शरण लेकर उनमे स्नान , ध्यान, जप करता है, शिव, केशव की आराधना
करता है वे सभी पीड़ाओं से मुक्त होता है । (नर्मदा
पुराण, अध्याय-11, श्लो-91 से 93)
त्रिलोक मे नर्मदा जल परम पवित्र है। निर्मदा तट
पर नित्य यज्ञ याग होते रहते है, इसलिए नर्मदा किनारे कोई भी स्थान हो वो एक तीर्थ स्थल के
समान है। नर्मदा के दोनों तटों मे देवता भी आराधना करते है। (नर्मदा
पुराण, अध्याय-23, श्लो-7 से 9)
त्रिलोक मे अनेक श्रेष्ठ नदियां है, परंतु नर्मदा
के समान अन्य कोई नदी नही है। जो नर्मदा जल मे स्नान, नर्मदा जल की
प्रदक्षिणा (परिक्रमा) करते है, नर्मदा जल का पान करते है, उनके 15 जन्मों तक
उत्तम संतान प्राप्त होगा,
उनका
वंश नाश नही होगा। (नर्मदा पुराण, अध्याय-29, श्लो-36 से 37)
नर्मदा के तट पर अत्यंत सुंदर एवं पवित्र तीर्थों
का माला है, जैसे
पत्रेश्वर तीर्थ, अग्नी
तीर्थ (आज का महेश्वर,
मध्यप्रदेश), शुलभेद
तीर्थ (शूलपाणी), लुंकेश्वर
तीर्थ (शिव जी राक्षस से बचने के लिए जल मे छिप जाते है), हनुमंतेश्वर
तीर्थ (हनुमान जी को ब्रम्हहत्या पाप से मुक्ति प्राप्त), रामेश्वर-लक्ष्मणेश्वर
तीर्थ (राम - लक्ष्मण को ब्रम्हहत्या पाप से मुक्ति प्राप्त) , कुंभेश्वर
तीर्थ (राम लक्षण जी के द्वारा एक शिव पिंडी मे दो शिवलिंग स्थापना कर तपस्या एवं
कुंभाभिषेक किए गए स्थल), बदरी तीर्थ (जो बद्रीनाथ जाने का फ़ल यही
दर्शन करने से प्राप्त होता है), स्कंद तीर्थ (स्कंद जी का तपस्थल), कुसुमेश्वर
तीर्थ (काम देव ने शिव जी के द्वारा भस्म होने के पश्चात शिव लिंग स्थापित कर घोर
तपस्या कर पुनः अपना शरीर प्राप्त किया हुआ स्थल), रोहिणी
तीर्थ (पती-पत्नी को हमेशा जोड़कर रखने वाला तीर्थ), शक्र य
इंद्र तीर्थ (इंद्र को श्राप के कारण उनके शरीर पर आए हुए हजारों योनियों से
तपस्या के द्वारा मुक्त करने वाला तीर्थ), गंगावाहक तीर्थ (जो स्वयं गंगा जी के पाप को
नर्मदा जल मे प्रवेश करने से उनके पाप दूर कर उन्हें पवित्र करती है), सुद्धेश्वर
तीर्थ (शिव जी के ब्रम्हहत्या पाप को नष्ट करने वाला तीर्थ) , ऋणमोचन
तीर्थ (जीव के सभी जन्मों के ऋणों से मुक्त करने वाला तीर्थ), इत्यादि 60 करोड़ 60 हजार तीर्थ
स्तिथ है, जिनमे से यह
केवल नाम के लिए कुछ तीर्थों का नाम है।
* मेरा
विचार:
इन सबका उल्लेख नर्मदा पुराण मे है, परंतु
कलियुग के प्रभाव से आज केवल 1 लाख तीर्थ ही मानव को दर्शन देते है। आज भी अनेक तीर्थ
अपने आप जलमग्न हो रहे है,
य
दृष्टिगोचर नही हो रहे है।
हम सब कुछ समय के
अतिथी हैं। जो भी नर्मदा परिक्रमा करने जा रहे है, वे मन ध्यान से हर तीर्थ एवं घाट का दर्शन करें। हमे कलियुग मे उस स्थलपुराण की जानकारी न हो, पर नर्मदा जी के हर तट , हर एक कण एक तीर्थ स्थान है। नर्मदा तट एवं वहाँ
के हर एक तीर्थ रहस्यों से भरा है !
* तीर्थयात्रा
कैसे करते है ?
मौनी
रहकर तीर्थ सीमांत तक जाए,
लेकिन
जब तक तीर्थ सिमा का दर्शन न हो, तब तक तीर्थयात्री वाक संयमी रहे। (नर्मदा
पुराण, अध्याय 75, श्लो- 16) केवल एक
वक्त भोजन, कम समय
निद्रा, नित्य जप, ध्यान, ईश्वर
चिंता, सौच, सुचि, शुभ्रता
रखने वाला; काम, क्रोध, मद, मात्सल्य, लोभ
इत्यादि विकारों पर संयम रखने वाला होना चाहिए !
* हमेशा मुझे
लोग एक सवाल करते रहते है। मेरे बच्चे की शादी नहीं हो रही है, किसीकी नोकरी
नहीं है, आर्थिक समस्या
है, हमे ये दुःख है, वो तकलीफ है, वगेरा वगैरा।
पर क्या यह शाश्वत है?
प्राणी मात्र से कर्म बंधन से जन्म लेता है।
वह मनुष्य, पशु, पक्षी य
चाहे कोई भी क्यो न हो , जैसे उसके कर्म है उसी रूपी बंधन से इस जन्म
मे हर एक रिश्ते से जुड़ता है, एवं वैसे
ही उसके पूर्व संचित कर्मो के कारण सुख, दुःख
प्राप्त होता है। चाह कर भी उनसे मुक्ति नहीं मिलती जब तक वह खुद उसे पूर्ण रूप से
न भोगे। आदिगुरु शंकराचार्य जी ने कहा है "ऋणानुबंध
रूपेण पति पत्नी शुतालया, ऋणक्षयं क्षये यांति तस्मात जागृत जागृत" - माता, पिता, पती, पत्नी, संतान, घर, इत्यादि
अपने पूर्व जन्म के ऋण के कारण इस जन्म मे मिलते है। जब उनसे हमारे ऋण चुक्ति हो
जाती है, उनसे हमारा बंधन टूट जाता है य उनसे हम दूर
हो जाते है। “प्राणी के कर्म
उसके साथ सोते है, उसके साथ जागते है। उतना ही नहीँ, प्राणी जिस
किसी वस्तु य व्यक्ति ,इत्यादी से ज्यादा मोहमाया मे फसता है, य प्यार करता
है, उसी के कारण उसे ज्यादा दुःख प्राप्त होता है।“
इसलिए विषय वासना , मोहमाया ज्यादा मत करें। कुछ सीमा तक सब ठीक
है, मांगते ही रहोगे तो तुम्हें बंधनो से छुटकारा
कैसे मिलेगा?
इसके लिए एक ही अस्त्र है - " गतं न
सोचामी कृतं स्मरामी - जो बीता उसे भूलकर, अभी जो हो रहा है उसपर ध्यान दें ” ! जो हुआ उसको सोचकर रोना मत, जो आनेवाला
है उसके लिए ज्यादा अपेक्षा य आशा मत करो।" यह सभी अशाश्वत है। धन के लोभ मत
करें, दान धर्म
करते रहें। सुख हो दुःख हो या कस्ट हो उसे स्वीकार करते आगे बढ़ो, ईश्वर पर
भरोसा रखो वो सब सभांल लेंगे। कलियुग केवल ध्यान एवं दान युग है। जितना आप ध्यान
एवं यथा संभव दान करेंगे उतना आप पुण्य प्राप्त करेंगे ! अपने कमाई का 10 % आप दान कर
सकते है यह शास्त्रोक्त नियम है। अपने अर्थिक स्थिती के अनुसार आप दान पुण्य करें।
* कैसे
ब्राम्हण को दान देना है?
स्वयं ईश्वर ने उत्तानपाद से यह आख्या किए
है। "बिना पढ़ी विद्या वाला विप्र, वेदरहित विप्र, रोगी, हीन (कम)
अंग वाले, अतिरिक्त
(ज्यादा उंगली इत्यादि) अंगों वाले, काने, पौनर्भव, अवकीर्ण, काले दांत
वाले, सब कुछ
खाने वाले, वृषली के
पति, मित्रद्रोही, चुगलखोर, सोमविक्रेता, पराई निंदा
करने वाला, पिता-माता
तथा गुरु त्यागी, सदा
ब्राम्हणों की निंदा करने वाला, मंत्रयुक्त शूद्रान्न खाने वाला, कर्मचाण्डाल
ऐसे ब्राह्मण सदा अस्पृश्य है। इनको स्पर्श होते ही तत्काल स्नान करें। कुरूप
नखवाले, वृषली, चोर, वार्धष्य, कुण्ड, गोलक, महादानग्राही, आत्महत्या
के प्रयासी, वेतनभोगी, अध्यापक, नपुंसक, कन्यादुशक, अभिसप्तम
ऐसे ब्राह्मणों का सदा त्याग करें। जो द्विज प्रतिग्रह मे प्राप्त धन से वाणिज्य
करते है, जो समृद्ध
हो उन्हें कदापि दान नहीं देना चाहिए" ! जो वेदाध्यायी, वृत्तिततपर, बिना लोभ का हो
उसी ब्राह्मण को प्रदत्तदान अक्षयफलजनक होता है। (नर्मदा
पुराण, अध्याय-75, श्लो-3 से 13)
ईश्वर ने उत्तानपाद से यह सुंदर आख्या किए -"गृह में
किंवा अरण्य अथवा तीर्थमार्ग मे जो अन्न, जल दान करता है, उसे यमलोक का
दर्शन नही करना पड़ता। उसे अखिल दानफल की प्राप्ति होती है। जल-अन्न-अभय इन दानत्रय
को सदा देते रहना चाहिए। विशेषतः अन्नदान जैसा कोई दान नहीं है। (नर्मदा
पुराण, अध्याय-75, श्लो-14-15)"
* मुझे लोग
एक सवाल करते है हमारा जप कब सफल होगा?
जिनको इन पांच चीजो पर
ज्यादा इच्छा य आसक्ति न हो, तब उनके द्वारा की गई जप सफल होता है - 1) विषयभोग (सांसारिक
विषयों पर उपभोग करने की इच्छा नहीं रहना है) , 2) निद्रा (केवल 5 से 7 घन्टे
निद्रा ही करना है) ,
3) हंसी (हर बात
पर हास्यास्पद न होकर जहाँ जरूरी वहीँ हँसना सीखना है), 4) जगत्प्रीति (सांसार
के सब प्राणी व घटनाएँ ,
यह
मेरा है ऐसा भाव नही रहना है, कोई चीज पर ज्यादा मोह न रहना है), 5) ज्यादा बोलना (मित भाषी
होना है)
समय ऐसा था परिक्रमा वासियों को बहुत सन्मान
मिलता था। अब कुछ
स्थानों मे ऐसा माहोल आगया है, के परिक्रमा वासी गुजरते ही वहाँ के निवासियों को लगता है
"देखो आगये फ़्री का खाने, पीने, अपने परिसरों मे गंदगी फैलाने।" यह कुछ व्यक्तियों के
कारण पूरे परिक्रमा वासिओंको दोषी ठहराते है। मेने खुद
जब अपने परिक्रमा के दौरान शूलपाणी झाड़ी, अमरकंटक जंगल मार्ग से गुजरते हुए वहाँ के
मूल निवासियों से संपर्क मे आकर बात करने के दौरान वे यह चिंता ओर परिक्रमा
वासियों के प्रति अपना भाव व्यक्त किए। कुछ विशेष
राज्य, तथा शहर, य स्थान के
व्यक्तियों के ऊपर वे आरोप करते है। कुछ स्वार्थ, अकल के अंधो से
हुई गलतियों के कारण पूरे परिक्रमा वासिओंको दोषी ठहराया जाता है। क्रीपया इस विषय
का ध्यान दें।
मेरा किसी व्यक्ती, समुदाय, राज्य, तथा अन्य
व्यक्तियों से विवाद नहीं है। मुझे आप सभीको इतना बताना है, की
परिक्रमा का महत्व समझें,
फिर
परिक्रमा करें। अन्यथा धीरे-धीरे नर्मदा परिक्रमा का महत्व संपूर्ण रूप से मिट
जाएगा। नर्मदा क्षेत्रों मे परिक्रमा वासी एक कलंक बनकर न रहे बल्कि एक साधुवाद, आध्यात्मिक
चिंतन का परिचय दे।
* केवल
तीर्थस्नान, यात्रा, प्रसाद
पाने से ही व्यक्ति के पाप नही जाते-
किसीभी व्यक्ति को केवल तीर्थस्नान, यात्रा, प्रसाद
पाने से ही उनके पाप नही जाते है। उनमे श्रद्धा एवं भक्ति होना चाहिए, जप एवं
ध्यान करना चाहिए ! (नर्मदा पुराण, अध्याय-11, श्लो-40 से 42) जिनका अंतःकरण सुद्धि न हो वे 100 वर्ष तक वेद
पठन करने , नाना प्रकार के
मंत्र जाप करने से भी कोई फल नहीं है। (नर्मदा
पुराण, अध्याय-11, श्लो-65 से 69)
कुछ परिक्रमावासी सुबह उठते ही बिना स्नान किए
रात्री पहने हुए वस्त्रों से सुबह सुबह परिक्रमा मे भागते रहते है। वही कापडों से
मंदिर मे प्रवेश करते है,
न सुची
रहती है न शौच। अगर उन्हें रोक टोक किए य समझाए तो बहुत बुरा बर्ताव करते
है। उनके लिए एक श्लोक मे ऐसा वर्णन है – “जो व्यक्ति
सत्य, शौच के साथ
धर्मात्मा, जितात्मा होता
है, वही नर्मदा तट
के तीर्थों का फल पाता है,
पापियों
के लिए नर्मदा तट नहीँ है। वही शास्त्र सिद्धांत है। (नर्मदा
पुराण, अध्याय-32, श्लो- 10 से 11)
* परिक्रमा
के दौरान परिक्रमावासी
मंदिर, आश्रम, अन्नक्षेत्र, य किसी
व्यक्ति विशेष के घर पर फूल, पौधे, पत्र, फ़ल, बीज, सब्जी, इत्यादि
तोड़ लेते है, उसका क्या
परिणाम होगा?
मन को दुःख देने वाली एक ओर बात है, जो बहुत से
परिक्रमावासिओं से जाने अंजाने हो रहा है। परिक्रमा के
दौरान कुछ परिक्रमावासी जो मंदिर, आश्रम, अन्नक्षेत्र, य किसी व्यक्ति विशेष के घर पर रहते है, वे बे धड़क वहाँ
के फूल, पौधे, पत्र, फ़ल, बीज, सब्जी, इत्यादि तोड़ लेते
है, किसी के इजाजत
के बगैर किए गए इस कार्य को "चोरी" कहा जाएगा। बहुत जगहों
पर जाली य कांटो से रक्षण प्रहरी बनाने के बावजूद कुछ परिक्रमा वासी उसे तोड़कर भी
अंदर जाकर सब नष्ट कर रहे है। यह बहुत ही निंदनीय है। विशेषतः महिला
परिक्रमावासिओं ने फूल तोड़ना करने के कारण सभी मंदिर, आश्रम, अन्नक्षेत्रों
मे परिक्रमावासिओं के इस हरकत का शिकायत हो रहा है, के वे परिसर मे
बाग बगीचे नष्ट करते है। यह आप के लिए शोभदायक नही है एवं इसका
प्रभाव भी बहुत बुरा है।
जो व्यक्ति अपने नित्य जीवन मे मंदिर, आश्रम, अन्नक्षेत्र
व बाग बगीचे मे किसीके अनुमती के बिना कुछ भी फूल, पौधे, पत्र, फ़ल, बीज, सब्जी, इत्यादि
तोड़ लेते है, वे अपने
आगामी जन्म मे निश्चय रूप से नपुंसक रूप से जन्म लेते है। (स्कंद पुराण, एवं गरुड़
पुराण) । वैसे
अगर वह व्यक्ति कोई तीर्थ यात्रा कर रहा हो , एवं वह ऐसे फूल, पौधे, पत्र, फ़ल, बीज, सब्जी, इत्यादि तोड़
लेते है, तो उसे घोर पाप
लगता है। (नर्मदा परिक्रमा पूर्ण रूप से पवित्र तीर्थ यात्रा ही है, अगर परिक्रमा
करते समय कोई ऐसे कार्य करता है तो क्या होगा)। वैसे व्यक्ति 100 जन्म तक उस
मंदिर, अन्नक्षेत्र, आश्रम परिसर मे
कुत्ते, एवं सूवर के
योनि मे जन्म लेकर उन परिसरों मे मल,मूत्र आदि का सेवन करते हुए दुःख पाएंगे। उतना ही नहीँ, अगर वह स्त्री
है तो इस जन्म मे उनको जल्दी वैधव्य (विधवा) प्राप्त होगी, उनके वंश मे आगामी
पीढ़ी मंद बुद्धि वाले होंगे। पुरुषों के घर परिवार मे अशांती बना रहेगा। नाना
प्रकार के रोगों से सय्या पर पड़े रहेंगें (गरुड़
पुराण एवं शिव पुराण)!
शिव पुराण के अनुसार मंदिर, आश्रम, अन्नक्षेत्र
बाग इत्यादी मे जो भी फूल,
पौधे, पत्र, फ़ल, बीज, सब्जी, इत्यादि है, वह केवल उस
स्थान के देवता के लिए ही है। उन्हें बाहर वाले न तोड़ सकते है, नाहीं उससे
पूजा कर सकते है। इस से हमें उपरोक्त घोर पाप लगता है। यदी अबतक आप ऐसे
कार्य परिक्रमा के दौरान किए हो तो वह अज्ञान के कारण हुआ होगा, पर उसका फल
हमें भोगना ही पड़ेगा। क्योंके जाने अंजाने जो भी पाप किए होते है उस कर्म का फ़ल
जीव को भोगना ही पड़ता है। अतैव आप माँ नर्मदा जी से इस पाप की मुक्ति
का प्रार्थना करें।
ऐसे हमारे द्वारा अगर कोई भी अकृत्य हुआ हो
तो उसका निवारण कुछ इस प्रकार हो सकता है। हम जो मंदिर, आश्रम, अन्नक्षेत्र, बाग इत्यादि मे
कुछ तोड़े है, वहाँ जाकर
पुण्य तिथियों मे वैसे ही वृक्ष इत्यादि को वृक्षारोपण करते है, तो हमारे पाप
कम होते जाएंगे। परंतु यह आजीवन करना है, एवं वहाँ हम वृक्षारोपण करते समय हमने यहाँ ऐसे
कार्य किए थे उसके लिए माफ करें, यह कहते हुए करना उत्तम है। (शिव
पुराण)!
* मेरा
अनुरोध है-
नर्मदा खंड एवं परिक्रमा को व्यापार का क्षेत्र न
बनाएं। यूट्यूब पर चेनल बना कर पैसे कमाने का जरिया नहीँ है! नर्मदा परिक्रमा
लग्जरी बस मे करने वाली, उत्तम व्यवस्था
मे रहने वाली, 3 समय भोजन खाने
वाली पिकनिक नहीं है। यात्रा
गाड़ी मे बुजर्ग, रोगी, बाल य शिशु, जो शारीरिक
अक्षम व्यक्ति हो, जिनका समय
बहुत अभाव हो, वे सब कर
सकते है। एक रुपए पर
चवन्नी का फायदा योग्य है पर एक रुपए पर एक य उस से अधिक रुपए का फायदा वो भी
नर्मदा के नाम पर नर्मदा परिक्रमा के नाम पर बहुत विचार योग्य है। पर कमाई का
फायदा भी आध्यात्मिक यात्रा से न जोड़ें जिनसे आपको पीढ़ी दर पीढ़ी पाप का गठरी लेकर
जाना पड़े।
मेने ऐसे भी परिक्रमावासिओं को देखा है, जो समय पर भोजन, उत्तम व्यवस्था, सुख सुविधा के
लिए अन्नक्षेत्रों व आश्रमों मे झगड़ा करते है। वहाँ कोई सेवा देता है य नहीँ यह
जानकारी भी नही लेते है। कैसे
परिस्थितियों मे वे सेवा करते है यह भी नही जानते है। उन क्षेत्रों मे पूर्ण गंदगी
फैलाते है। रात के बिछाए हुए गद्दे तक नहीं उठाते है। अगर गद्दे उठा भी लिए तो उस
परिसर को झाड़ू भी नही लगाते है। कूड़ा, कचरा, इधर उधर फेंकते है। कुछ तो ऐसे भी होते है जो परिक्रमा मे
भी अलग अलग पार्टी के नाम से परिचय करवाते है, सुख सुविधा के
लिए अलग अलग संघ एवं संघटनों के नाम का व्यवहार करते है। परिक्रमा
मे आपको संत की आख्या दी जाती है, वहां ऐसे व्यवहार शोभा नही देता है। उन सभी से एक
ही कहना है अन्नक्षेत्र एवं आश्रम के सेवक आपके जागीर नहीँ है। वे सेवा
करते है उसका मतलब यह नहीं के आपके अकृत्य भी सहना है। आप एक
आध्यात्मिक यात्रा पर जा रहे हो, वातावरण भी वैसे ही रखें। खुद उन जगहों पर सेवा करें ताकी
आपके बाद आपको सब याद करेंगे, आपके जाने के बाद अन्य परिक्रमावासिओं को कोई दोषारोपण न
करें। आप परिक्रमा मे जाती, वर्ण, लिंग के अतिरिक्त केवल मानव के रूप ही माने जाते हो। मानवता, सेवा भाव, भक्ति, मन, वचन, कर्म यह
त्रिकरण सुद्धि लाएं एवं सहन शीलता अपने अंदर लाएं। आपके व्यवहार ही नर्मदा तट पर
आपका मान दंड है। परिक्रमा एक साधना है। मनुष्य अपने
संचित एवं प्रारब्ध कर्मों को नर्मदा तट पर स्वयं सुधार कर अपने आगामी कर्मों को
सुधारने का एक मौका है। इसे पवित्र ही रहने दीजिए।
हम हर साल परिक्रमावासिओं के सेवा करने के लिए
अन्नक्षेत्रों मे सहयोग करने के लिए बहुत अनुरोध करते है। पूरे नर्मदा खंड मे नहीँ
पर गिने चुने 10 -15 अन्नक्षेत्र जो
बहुत गरीब व्यक्तियों द्वारा चलाया जाता है उनको सेवा करने के लिए कहते है। पर 100 जन को बोलते है
तो कोई 2 व्यक्ति सेवा
करने आगे बढ़ते है। कोई बात नहीं कोई 2 जन को तो हम सेवा के लिए प्रेरणा दे पा रहे हैं। बाकी के 98 लोगों मे 90 लोग परिक्रमा
कर चुके होते है, पर वो कभी आगे
नहीं बढें है। आश्चर्य है। वे खुद बोलते है, नर्मदा खुद संभालेगी। हाँ। यह सच है नर्मदा खुद
संभालेगी। अगर हर कोई ऐसे ही बोलेगा, तो वो दिन भी दूर नहीं है जब नर्मदा खंड मे परिक्रमा करने
जाओगे तो लोग हमें दौड़ा दौड़ा कर भगाएंगे, यह कह कर मुफ्त का खाने के लिए आगए हैं। लेकिन आज
भी कुछ भक्त ऐसे है, जो अपने तन
मन से नर्मदा परिक्रमावासिओं की सेवा कर रहे है। शायद इसीलिए आज भी परिक्रमावासी
भूखा नहीँ सो रहा है। जो भी नर्मदा
परिक्रमा किया है, उसको नर्मदा
खंड के नमक का कर्ज अदा करना ही पड़ेगा। चाहे आप मानो य न मानों। हमे भोजन खिलाने
वालों के कर्म हम ले कर बोझ ले रहे है अपने सिर पर। उसको हल्का करलो वक्त रहते
अन्नक्षेत्र मे अन्नदान के सेवा मे सहयोग करते हुए। क्या पता किस रूप मे नारायण
एवं शिव आपके भाग का अन्न पाकर आपके कर्मों को काट कर उत्तम गती कब दे दें।
आज भी बहुत आश्रम य अन्नक्षेत्र मे ही शौचालय
निर्माण क्यो नही हो पाया ? अगर वहाँ
आर्थिक दिक्कत है तो हम जैसे कुछ सेवक आगे बढ़कर शौचालय निर्माण करने की इच्छा रखें
तो गंदगी नर्मदा तट पर क्यो होगा ? हम सब केवल दोष
परिक्रमावासिओं पर क्यों डालें ? सेवा और सच्चे
सेवकों की अभाव से ही आज नर्मदा खंड मे गंदगी फैल रही है। सब एक दूसरे पे आरोपण
करते है, क्योंकि आरोपण
करना बहुत सस्ता है। ये आरोप करने वाले खुद अगर गंदगी दूर करने का संकल्प लेकर आगे
बढ़ेंगे, तो हर आश्रम पर
एक शौचालय बन सकता है। पर कोई नही करता। पर 100 जन को बोलते है
तो कोई 2 व्यक्ति सेवा
करने आगे बढ़ते है। क्योंके बाकी सबके
पास वक्त, सेवा के
लिए धन की कमी, य केवल
बहाना बनाना है। पर दूसरों के लिए आरोपण करने जरूर आगे बढ़ते है। यह सत्य है।
* जिनकी
श्रद्धा नही है उनको कोई भी कार्य मे सफलता नही मिलती -
“84 लाख योनियों के चक्कर काटने के बाद मानव
शरीर मिलता है, लेकिन उनमे
से केवल कुछ लोगों को ही शिव भक्ति प्राप्त होती है । शिवकृपा केवल
श्रद्धा से प्राप्त होती है, एवं जिनकी श्रद्धा नही है उनको कोई भी कार्य मे सफलता नही
मिलती है। जिनमे भक्ति है उनका जीवन सफल है।“ (नर्मदा
पुराण, अध्याय-11, श्लो-7 से 9)
जिनकी श्रद्धा नही है, मूर्ख है, दंभी है, दूसरों को दुःख
देते है, शास्त्र
विरुद्ध बोलना , व धनार्जन करते
है, वे कभी सुखी
नहीं रहेंगे। (नर्मदा पुराण, अध्याय-11, श्लो-38)
* नर्मदा तट
पर अकृत्य करने वालों को क्या परिणाम है?
शिव जी की कृपा से नर्मदा जी के दोनों तटों
को लाख लाख शिवलिंग ,
रुद्र
गण, सिद्ध
पुरुष, एवं ओंकार
हमेशा रक्षा करते रहते है। इसलिए कोई भी मनुष्य अन्य कोई भी तीर्थ मे कोई भी
पाप करें, वे नर्मदा तट
पर स्नान करने से क्षय हो जाते है। लेकिन नर्मदा तट पर आकर कोई भी मनुष्य कोई भी
पाप करे , वो
वज्रलेख के समान कठिन हो जाएंगे, एवं उसे लाखों
जन्मों तक पीछा नही छोड़ेंगे। (नर्मदा
पुराण, अध्याय-29, श्लो-47 से 48)
अफसोस के साथ
एक यह भी बताना जरूरी है,
की आज
कल कुछ छल, धोखाधड़ी, बेईमान
प्रवृत्ति के व्यक्ति भी नर्मदा जी के तट पर अन्नक्षेत्र, आश्रम बनाने के
नाम पर, सेवा के नाम पर
लोगों को एवं नर्मदा भक्तों को धोखा दे कर उनसे धनराशी लेकर न सेवा करते है, न परिक्रमावासिओं
के सेवा कार्य मे विनियोग करते है। कुछ व्यक्ति अपने व्यसन, लालच, धन इकट्ठा करने
के आशा से माँ नर्मदा के नाम पर दिए गए धन, व्सतु, आभूषण इत्यादी खुद हड़प कर भाग जाते है, कुछ डम्बोक्ति
दिखाकर उल्टे आरोप लगाते है, अन्य कुछ व्यक्ति सेवा के नाम पर बहुत बत्तर तरीके से
परिक्रमावासिओं से व्यवहार करते है, बहुत ही बेकार भोजन देते है, जो जानवर भी
शायद न खाएं। बस आप ऐसे लोगों से चौकन्ना रहे। अनुभवी
सेवक, संत, साधू को ही
सेवा करें। अंजान व्यक्ति,
संस्थाएं, संघो से
दूर रहे। ऑनलाइन मे कोई लेनदेन करने से पहले किसे भेज रहे है, उसकी पहचान
क्या है, जिसे भेज
रहे है वह व्यक्ति ओर सेवक एक ही है य नही यह सब अच्छे से देख परख कर ही आगे बढें।
ऐसे लोगों के कारण अच्छी सेवा करने वाले सच्चे सेवकों को भी निंदा अपमान सहना पड़
रहा है। एक साथ एक
आश्रम मे 100 से अधिक
परिक्रमा वासी आएं तो कैसे वो लोग कम सहयोग राशी से सेवा कर रहे है, आर्थिक स्थिती
अस्थिरता के बावजूद वे ब्याज पर भी धन लाकर केवल माँ नर्मदा जी के लिए
परिक्रमावासिओं को भोजन करवाते है। ऐसे सेवकों को कोटी नमन। ऐसे निस्वार्थ सेवकों
को देखकर अगर छल प्रवुत्ती के लोग नहीँ बदलेंगे तो निश्चित रूप से उनके पापों
हिसाब माँ नर्मदा जल्द ही करेंगी।
नर्मदा एक सीमा तक सब सहती है, उसकी सिमा पार
करने से वह अपना प्रलयकारी रूप दिखाती है। अच्छे आछो को अपने से दूर कर देती है, राजा को प्रजा
एवं अहंकारी के अहंकार नाश कर देती है। वरना वो
माँ है, किसीसे
उनको क्या दुश्मनी? अपने कर्म
ही हमें उनसे अलग कर देती है। अपने सीने पर हाथ रख कर अंतः करण करके देखें आपको
खुद पता चलेगा आपने नर्मदा य नर्मदा खंड मे कोई ऐसे कृत्य नही किए? जिस कारण
आपको उनसे दूर होना पड़ा ?
य
नर्मदा जी खुद दूर हो गई हो? य आजके दुरवस्था का कारण क्या है? हमारे सभी
कर्मों का हिसाब होगा, देर सही पर
शक्त ही होगा, जो न आप न हम
निवारण कर सकते है।
प्रकृति, पवन, जल,
अग्नि, अंतरिक्ष, धरती माँ यह
सभी ईश्वर के अंग है, अस्त्र है।
इन्हें जो भी छेड़ेगा उसको मूल्य चुकाना ही पड़ेगा !
इसलिए नर्मदा भक्तों आप परिक्रमा कैसे करेंगे
नर्मदा मैया को एवं नर्मदा तट के बारेमे कैसे सोच रख कर जाते हो वह आप पर है ! नर्मदा
पुराण मे उल्लेख नियमों के साथ मेने आपको चेतावनी एवं जानकारी दी है ! आप कितने
परिक्रमा कर रहे हो वह संख्या नहीं बल्कि आपके एक भी परिक्रमा हो उसकी गुणवत्ता
मायने रखता है।
आशा करता हूं मेरा यह उद्देश्य आप सबको
जागृत करे, परिक्रमा
का महत्व समझ कर अपनों को ओर मित्रों को उचित जानकारी दें।
आपका ,
रवि कुमार
1) परिक्रमा से पहले क्या करें ?
उ) सर्व प्रथम अगर आप परिक्रमा करना चाहते हैं , तो कृपया आप अपने घर -परिवार को जानकारी देकर ही परिक्रमा पर निकले ! ऐसा नहीं की किसी सदस्य से वाद विवाद करके य दुःख के कारण आप किसीको बिना बताये घर से निकलकर परिक्रमा करने चलेगए ! इस से भले ही आप परिक्रमा कर रहे हो , परन्तु मन्न कभी प्रसन्न नहीं रहता हे ! हर वक़्त बेचैनी रहती हे . ईश्वर पर ध्यान कम और अनावश्यक चिंता ज्यादा रहता हे ! ऐसा भी होजाता हे की आपको परिक्रमा खंडित करके आधे मे कहीं वापिस जाना पड़ेगा ! यह मैया जी परीक्षा लेती हे . इसका कारण आप अपने स्वजन को दुखित करके उनको परेशान करके बिना बताए घर से निकल कर उनके दुःख का भागिदार बन जाते हो ! जब स्वजन दुखी हो तो ईश्वर के प्रिय आप कैसे हो सकते हो ? इस वजह से चाहे जो भी होजाए , परिक्रमा करने निकलने से पहले अपने परिवार वर्ग का अनुमति लेकर ही जाए ! इस से आपको य किसीको परेशानी नहीं होगी !
2) कितने लोग साथ मे परिक्रमा
कर सकते है ?
उ) एक निरंजन, दो सुखी, तीन मे खटपट, चार दुखी.
- अगर आप अकेले जा रहे है तो
कोई चिंता नहीं,
यह
सबसे उत्तम है । कहीं मन चाहे रुक सकते हैं , या मन न करे तो आगे बढ़
सकते है। सब देखभाल,
जरूरतें
माँ नर्मदा जी व्यवस्था करावा देती है। कहीं कोई आपत्ति या विपत्ति नहीं आता है।
बस माँ नर्मदा जी पर भरोसा रखें ।
- अगर दो जन जा रहें है तो
भी अच्छा है। कहीं कुछ दुविधा हो या जरुरत हो तो एक दूसरे के काम आएंगे। छोटे मोटे
वाद विवाद सब मे होता है , लेकिन दो व्यक्तिओं के बीच मे हुए वाद सुलझ
जाते है ओर यात्रा भी खुसी-खुसी संपन्न होजाता है।
- अगर तीन व्यक्ति जा रहें
है तो ठीक है। कहीं कुछ दुविधा हो या जरुरत हो तो एक दूसरे के काम आएंगे। छोटे
मोटे वाद विवाद निपटाते हुए एक दूसरे के मन ओर इच्छाओंको मद्दे नजर रखते हुए
यात्रा करना पड़ता है।
-
अगर
चार या उस से अधिक व्यक्ति जा रहें है तो जरा सम्भल के जाएं । वाद विवाद निपटाते
हुए एक दूसरे के मन ओर इच्छाओंको मद्दे नजर रखते हुए यात्रा करने से अच्छा है , वरना खट-पट ज्यादा रहा तो
सम्पर्क किसी मे नहीं बनता । ध्यान माँ नर्मदा जी पर कम ओर अपने विवादों पर ज्यादा
रहेगा तो परिक्रमा का कोई मोल नहीं रहता है । किसीको रुकना होगा, किसीको जाना होगा , किसीको खाना होगा, ऐसे छोटे-छोटे बातें भी
बड़े वाद के रूप ले सकते है। वरना कोई दिक्कत नहीं होता है ।
3)
परिक्रमा
कितने प्रकार के हे? एवं कितने दिन की होती हे?
उ) सृष्टि में एक मात्र
नर्मदा नदी ही कल्पान्त के बाद भी प्रवाहित होती है। एवं एक मात्र नर्मदा नदी हे
जिसकी परिक्रमा होती हे ! कालानुक्रमेण, देश काल परिस्थितियों के
अनुसर विभिन्न प्रकार के परिक्रमाओं का प्रचलित हे, जैसे
की मार्कंडेय परिक्रमा, पद्मक परिक्रमा, जल-हरी परिक्रमा, रूंडा परिक्रमा, मुंडमाला परिक्रमा, दंडवत् परिक्रमा, हनुमत् परिक्रमा, द्रविड
परिक्रमा, आर्य परिक्रमा, चंद्रकोर
परिक्रमा, समर्पण परिक्रमा, जलकुंड
परिक्रमा, विहंगम परिक्रमा, अंतःसलिला
परिक्रमा, त्रिकूट परिक्रमा, इत्यादि
! जिसमे से केवल कुछ ही आज के समय में प्रचलन हे !
मूल तह परिक्रमा 3 साल 3 महीने 13 दिन की होती है । उसमे कम
से कम 3
चातुर्मास
भी होते है। परिक्रमा वासी हर एक तीर्थ स्थल, घाट, मंदिरोंका दर्शन करते हुए
परिक्रमा सम्पूर्ण कर सकते है। परन्तु समय के अभाव या अन्य कारणों के वजह से लोग
अपने समय के अनुसार परिक्रमा करते है। कोई 4 महीने मे, तो कोई 3 महीने मे, कोई 1 साल मे, तो कोई 6 महीने मे। जो समय उपलभ्द
हुआ उसके अनुसार परिक्रमा कर सकते है।
कुछ लोगों के
पास समय अभाव ज्यादा होता है, या विदेश मे रहते है, तो वो लोग खंड परिक्रमा
भी करते है। खंड परिक्रमा मे व्यक्ति परिक्रमा उठाते है और अगर 1 महीने बाद उनको परिक्रमा
छोड़ कर जाना पड़ेगा तो , वे अपने पास रखे हुए नर्मदा जल के पूजा की
सीसी को कोई मंदिर,
आश्रम
,
कुटी
या श्रद्धालु के घर मे रख कर अपने घर वापस चले जाते है। फिर कुछ दिनोंके या
महीनोंके बाद वापस आकर, वापस उसी स्थान से परिक्रमा प्रारम्भ करते
है। इस प्रकार वे जितने बार होसके उतने बार अपनी परिक्रमा को खंड करते हुए परिक्रमा
पूर्ण करते है। परन्तु श्रेयस्कर है, आप परिक्रमा खंड न करके
एक ही समय पूर्ण करलें , भले ही 3 महीने या उस से ज्यादा क्यों न हो।
4) चातुर मास क्या होता हे?
उ) देवशयनी एकादशी या
देवपोढ़ी एकादशी या महा -एकादशी या प्रथम -एकादशी , आषाढ़ महीने (जून-जुलाई) के
शुक्ल पक्ष एकादशी से शुरू होता हे। इसे आषाढ़ी एकादशी भी कहते हे। कहाजाता है इसी
दिन श्री हरी या विष्णु जी क्षीर सागर पर शेषनाग के ऊपर शयन कर योगनिद्रा मे जाते है। इसीलिए इस
दिन को देवशयनी एकादशी कहते है। और फिर श्री विष्णु जी कार्तिक महीने (अक्टूबर – नवंबर ) के शुक्ल पक्ष की
एकादशी यानी देवउठनी या देव उत्थान एकादशी को क्षीर सागर मे चार महीने की योग निद्रा के बाद उठते हैं। इस चार महीने के समय को चातुर्मास
कहते है।
इन चातुर्मास के समय
नर्मदा जी का परिक्रमा भी वर्जित रहता हे। परिक्रमा वासिओंको कोई मंदिर, आश्रम, कुटी या श्रद्धालु के घर
पर रहकर इन चातुर्मास मे भजन कीर्तन आदी करना पड़ता है। वे इस समय परिक्रम नहीं कर
सकते है। माना जाता है की अपने देश मे जून महीने से अक्टूबर महीने तक बारिश का
मौसम रहता है। उस समय नर्मदा जी मे जलस्थर भी भयंकर रहता है। बहुत जगहों पर भयंकर
बाढ़ भी आती है। इसी वजह से परिक्रमा वासिओंको यह चार महीने परिक्रमा करना मना है।
कारण जो भी हो परिक्रमा वासिओंको इतना मानके चलना है की चातुर्मास मे परिक्रमा
नहीं करना है।
5)
पहनने
को किस प्रकार की कपडे लेना है?
उ)
पुरुष : 2
सफेद
रंग के धोती,
2 फुल
या हाफ कुर्ते ( जिस से आप आराम अनुभव करें ), 2 इनर वेर (गंजी, अंडरवेर या लंगोट ), 1 या 2 पोंछने के लिए टॉवेल (यह
सभी कॉटन के होने से अच्छा है)
महिला
: 2
सफेद
रंग के साड़ी,
2 फुल
या हाफ ब्लाउज ( जिस से आप आराम अनुभव करें ), 2 लेहंगा या साया या पिटीकोट
या फिर आप चूड़ीदार या कुरता - पैजामा पहनते हे तो 2 जोड़ी, 1 या 2 पोंछने के लिए टॉवेल ( यह
सभी कॉटन के होने से अच्छा है)
6)
ओढ़ने
बिछाने के लिए क्या रखना है?
उ) (परिक्रमा का मतलब एक
प्रकार का सन्यास जीवन है। आप जितना आराम दायक चीजोंका इस्तेमाल वर्जित करें उतना
अच्छा है )
सोने के लिए : बेड रोल
(बाजार में मिलते है) , या फिर एक सीमेंट का दरी (यह भी सिया हुआ
बाजार मे मिलते है ) - जितने हल्के हो उतना अच्छा है
ओढ़नेके लिए : 1 कॉटन का चद्दर - जितने
हल्के हो उतना अच्छा है
गर्म कपडे (स्वेटर ,मफलर या मंकी केप)
7)
सुबह
के नित्य कर्मो के लिए:
उ) 1 ब्रश, 1 जीभी, 1 पेस्ट का पैक
8)
पूजा
के लिए क्या समग्री रखना है?
उ) 1) नर्मदा मैया जी का छोटा
चित्र ( फोटो )
2) नर्मदा जल रखके पूजा
करनेके लिए छोटा सीसी ( हर घाट में प्लास्टिक के सीसी मिलता है )
3) एक बांस का काठी/ दंड
( जिसको पकड़ के आपको परिक्रमा करना है )
4) एक कमंडल ( जल भरके रखने
के लिए 1/2
या 1 लीटर का एक स्टील या
ताम्बे का केन ),
जिसका
पानी ही आप को प्यास के वक्त पीना है .
5) 1 छोटा पीतल या स्टील या
ताम्बे का थाली,
चन्दन
घोलने के लिए छोटा कटोरी, प्रसाद रखने के लिए छोटा कटोरी ( या फिर आप
यह सब एक थाली में ही रख सकते है ).
6) सूर्य जी को या किसी मंदिर
मे जल चढाने के लिए एक छोटा, पतला, ताम्बे या पीतल का लोटा
(अपने चार ऊँगली के बराबर छोटा लेना ही उत्तम हे)
7) छोटी अगरबत्ती का स्टैंड .
8) छोटी दिया, जिसके अंदर आप बत्ती डाल
सकें और दिया हवा आनेसे न बुझे .
9) छोटा सा चंदन ओर कुंकुम या
सिंदूर के डिब्बें .
10) एक छोटा सा घंटी ओर/ या
शंख (अगर आप पूजा के समय बजाते है तो ).
11) एक माचिस, एक अगरबत्ती का पैक, एक कपूर के दाने का पैक .
12) प्रसाद के लिए सक्कर के
दाने (चिरोंजी) या मूंगफली के दाने (जो आपको ठीक लगे)
13) नर्मदास्टक या नर्मदा आरती
न आती है तो एक छोटा पुस्तक रखलीजिए .
14) एक नोट बुक ओर पेन रखलीजिए, जिसमे आपको कोई आश्रम या
अन्नक्षेत्र मे सील डालने के लिए चाहिए। साथ ही अगर उसमे ज्यादा पन्ने या पेज हो
तो उसमे आपके खास अनुभव लिखके याद रखनेके लिए काम आएगा ।
15) होसके तो एक छोटासा
आध्यात्मिक ग्रन्थ जैसे भगवद्गीता या कुछ ओर ग्रन्थ नित्य पठन के लिए अपने साथ
रखें ।
16) हो सकेतो छोटेदाने वाले
रुद्राक्ष या तुलसी या कोई ओर माला रखलीजिए। क्योंके दिन भर के थकान से पूजा ठीक
से न होपाए लेकिन माला फेर के भगवान के नाम स्मरण करनेसे मन को सुकून ओर भगवत
अनुग्रह मिलता है।
(हमेशा आप पूजा सामग्री को 12 से 15 दिन आपके पास उपलब्ध रहने
जेसा देखिए । क्योंके अगर आपके पास सामग्री ख़त्म होगए तो खरीदने के लिए आस पास कोई
छोटा सहर हो तो सब सामग्री मिलजाएगी, छोटे गाँव मे सामग्रीओंका
मिलना मुश्किल होजाता है )
9) बर्तन भांडे कुछ रखना है
क्या?
ओर
कोई अन्य वस्तु भी रखें क्या?
उ) 1) आपको 1 थाली, 1 गिलास हमेशा अपने थैले मे
रखना है।
2) अगर आप रस्ते मे कहीं भोजन
प्रसाद खुद बनाना चाहें तो 1 छोटी कढ़ाई, 1 पतीला, दोनों के लिए ढक्क्न, 1 करछी रखलीजिए। ज्यादा
सामग्री रखेंगे तो आपको खुद वजन ढोना/ उठाना पड़ेगा ।
3) एक टोर्च लाइट रखें, जरूरत मे अँधेरे मे काम
आएगा ।
4) एक पतला नायलॉन या
प्लास्टिक की रस्सी पास मे रखें, कहीं जरुरत पड़े तो कपडे
सुखाने या कुछ बांध्ने को काम आएगा।
5) अगर आप कोई मेडिसिन्स लेते
है तो उनको याद् से रखलें।
6) एक छोटा सा बैग या थैला
मोड़कर अपने बैग मे रखें (कहीं कोई व्यक्ति आपको कोई खाने-पिने या अन्य वस्तु देंगे
और अगर आपका एयर बैग या झोला या थैले मे जगह न हो तो यह उस वक्त काम आएगा)
7) ओ. आर .एस. या ग्लूकोज के
सेचेट या पैकेट -
क्यों के हम परिक्रमा के दौरान
बहुत चलते हे . कभी बहुत धूप या पानी न मिलने के कारण निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन)
होजाता हे! बहुत थकान लगता हे. इस वजह से हमें शक्ति रखने
के लिए उस समय यह ओ.आर.एस. या ग्लूकोज पानी में घोल कर पिने से आराम
लगेगा .
8) अपना पहचान पत्र जरूर रखें (आधार/ वोटर आई.डी./ ड्राइविंग लाइसेंस/अन्य सरकारी पहचान पत्र), जिससे आपका परिक्रमा शुरू करने के लिए पहचान पत्र बनाना पड़ता है। श्री क्षेत्र ओंकारेश्वर से परिक्रमा शुरू करने वाले भक्त "मातृरक्षा सेवा संघटन", भक्त निवास के सामने, श्री निषाद राज भवन, ओंकारेश्वर, फ़ोन एवं व्हाट्सएप संपर्क क्रमांक- 94248 40977 से संपर्क कर के अपना पहचान पत्र दिखाकर, निःशुल्क परिक्रमा-पहचान पत्र बनवा सकते हैं।
10)
सब
सामग्री रखने के लिए क्या चाहिए?
उ) एक एयर बैग या झोला या मोटा थैला ! (सुनिश्चित करें कि आपके बैग का कुल वजन सभी सामग्रियों के साथ 8 - 10 किलोग्राम से अधिक नहीं हो।)
11) क्या जूते - चप्पल पहन
सकते है?
उ) एक जमाने में ऋषि
मुनियोंने नर्मदा परिक्रमा के समय नंगे पॉव या खड़ाऊ पहन कर परिक्रमा करते थे। आज
कल भी कुछ व्यक्ति मैया जी पर भक्ति से नंगे पॉव परिक्रमा करते है। परन्तु इस से
शरीर को बहुत कष्ट मिलता है , पॉव में छाले पड़जाते है , कांटे-कांच के टुकड़े, बिजली के तार के संस्पर्श
में आसकते है ,
जिससे
बहुत हानी होती है। इसलिए उत्तम है अगर आप सक्षम है तो ट्रैकिंग-शू पहने या अन्य
कोई जूते या चप्पल पहन कर भी परिक्रमा आराम से कर सकते है। इस से आपके शरीर को
उतना दिक्कत नहीं होगा ओर आपका भाव भी भक्ति के तरफ ज्यादा, शारीरिक कष्ट के तरफ कम
रहेगा ।
12) मोबाइल लेकर परिक्रमा कर
सकते हे क्या?
उ) परिक्रमा एक आध्यात्मिक
यात्रा है । जितना आप सात्विक रहेंगे, मनको सात्विक रखेंगे उतना
अच्छा है । लेकिन घर के लोगों के साथ सम्पर्क जरूर करना है, इस हालत मे आप एक सिर्फ
बात-चित योग्य छोटा फ़ोन अपने पास रखलें तो बेहतर है।
आज कल लोगोंको शौक होगया
हे स्मार्ट फ़ोन लेकर चलानेका। परिक्रमा मे भी शांति नहीं बनती। फेसबुक, यूटुब, इंस्टा न जाने क्या-क्या
चलाते रहते है । भाई अगर इतना ही करना है तो पिकनिक मानाने क्यों जारहे है।
परिक्रमा और परिक्रमा वासिओंके नाम ख़राब करने? परिक्रमा का महत्व खत्म
करने?
युगों-युगों
से चलते आरही यह परंपरा आजकल के पढ़े लिखे मूर्ख समझ नहीं पाते है । बस्स परिक्रमा
तो उनके लिए एक पिकनिक स्पॉट बनगया है।
परिक्रमा एक आध्यात्मिक
यात्रा है,
अपनी
आत्मा को परमात्मा के साथ संजोग करनेका एक मौका। न जाने कितने कुकर्म अपने गृहस्त
जीवन मे हम करते है , उन सबको दूर हटाके मन को दैव चिंतन मे लगाकर
सुकून पाना ही इसका बड़ा महत्व है। कृपया इसका ध्यान रखें।
अगर प्राकृतिक दृश्योंका
चित्रण करना है,
कुछ
अद्भुत स्थान,
मंदिर
वगेरा या अन्य कोई चित्र लेना है तो कैमरा लेकर जाएं या स्मार्ट फ़ोन लेकर जाते है
तो उसमे सिर्फ चित्र और वीडियो रिकॉर्ड करें, फिर उनको एक-एक फोल्डर
बनाके एक 100
g.b. के
पेन ड्राइव मे स्टोर करलें। इस से आपका मन भी भर जाएगा, और सोशल मीडिया से दूर रहकर
भगवत चिंतन भी होता रहेगा। क्या आपके जीवन मे आध्यात्मिकता के लिए सिर्फ आप जितने
दिन परिक्रमा करते है उतने दिन सोशल मीडिया से दूर रह नहीं सकते? आपकी परिक्रमा होने के बाद
जो फोटोस,
वीडियोस
आपने बनाये हैं उनको फेसबुक, इंस्टा, व्हाट्सएप्प वगेरा मे
अपलोड करें । उनका अच्छा वर्णन करें । अगर इतना भी आप नहीं कर सकते है तो बेहतर है
परिक्रमा ही न करें। आपकी चिन्ताधारा से बाकि परिक्रमा वासिओंको भी लोग छोटी नजर
से देखने लगें है। सब सोचते है ये परिक्रमा करने नहीं पिकनिक मनाने आते है। आप सब
से विनती है ,
परिक्रमा
का महत्व समझे।
(अगर मुझसे पूछते है तो, हाँ, मेने एक छोटा मोबाईल (800 रूपए वाला ) सिर्फ अपने
परिवार जनोंको बात करके अपना कुशल बतानेके लिए लेकर गया था। 4 महीने सोशल मीडिया वगैरे
से दूर मन बहुत सुकून था)
परिक्रमा करने के समय कुछ नियम:
13)
परिक्रमा के पहले दिन संकल्प विधि क्या हे ?
Ans) परिक्रमा शुरू करने से पहले अगर पुजारी या पंडितजी उपलब्ध रहे तो उनसे संकल्प करवा लें.
अगर आपकी दूसरी परिक्रमा हे तो आपको संकल्प विधि पहले परिक्रमा जैसे किये थे वैसे कर सकते हे
. अगर आप पहली य अन्य परिक्रमा कर रहे हैं और वहां पुजारी य पंडितजी उपलब्ध नहीं हे, तो इस प्रकार संकल्प पूजन करलें –
पहले नारियल , दो दीपक, प्रसाद के लिए हलवा या मिठाई , फूल, हल्दी , कुंकुम, चन्दन , मोली-धागा , सुपारी , जनोई , छोटा लोटा य कलश , एक रपये का सिक्का , अगरबत्ती , माचिस , नर्मदा जी का चित्र , जल भरने के लिए छोटी सीसी, हाथ मे पकड़ने के लिए दंड , कमंडल , आरती करने के लिए सामग्री , संख
(अगर हो तो), घंटी, मैया को चढ़ाने के लिए और पूजा मे व्यव्हार के लिए
-दो छोटे चुनरी , नर्मदास्टक , नर्मदा आरती , सत्यनारायण कथा के पुस्तक या पेज इन सब चीजों का व्यवस्था करलें
.
फिर मुंडन , शौर कर्म , स्नान के बाद साफ़ सुत्रे सफ़ेद वस्त्र पहन कर नर्मदा जी के घाट पर साफ़ जगह मैया जी के तरफ या पूर्व दिशा की और आसन पर बैठे , फिर सामने नर्मदा जल से भरा हुआ कमंडल, काठी य दंड, उसके सामने नर्मदा जी का चित्र, नर्मदा जल से भरा हुआ सीसी , नारियल रखें.
चुनरी चढ़ाएं ,फूल प्रसाद हल्दी, चन्दन , कुंकुम का हर चीज पर टिका लगाएं
. छोटे कलश मे नर्मदा जल भरें.
उसके सामने मोली-धागा रखें , छोटे लाल कपड़े मे य चुनरी मे एक रूपए का सिक्का सुपारी सहित रखें.
उसे भी चन्दन, हल्दी , कुंकुम का टिका लगाएं, जनोई रखें . फिर एक दिया लगाकर श्री गणेश जी को स्मरण करें.
अगरबत्ती , धुप , नैवेद्य दें
. फिर कलश पर दायां हथेली रख कर नर्मदा जी और शिवजी को स्मरण करते हुए बाएं हाथ से मोली-धागा दाएं हाथ के कलाई पर बांधें.
फिर माथे पर टिका लगाकर मैया जी के चित्र के पास हलवा प्रसाद या मिठाई रखें
. फिर नर्मदास्टक , नर्मदा आरती का पाठ करें
. अंत मे उठकर थोड़ा प्रसाद नारियल , फूल लेकर नर्मदा जी के प्रवाहित जल मे समर्पण करें फिर आसन पर बैठें
. सत्यनारायण कथा का पाठ करें य कोई पढ़ें तो श्रवण करें
. फिर उठकर दोनों हाथ जोड़कर उसी जगह पर तीन बार घूमकर प्रदक्ष्णा करें , बेठ कर अपने गलतिओं को माफ़ कर निर्विघ्न रूप से नर्मदा परिक्रमा कराने का प्रार्थना करें
. फिर सिक्का, सुपारी वाला कपडा या चुनरी को नर्मदा जल वाला सीसी पर बांध दे
(जैसे सीसी का मुँह खुल पाए).
उसमे थोड़ा प्रसाद भी डालें.
फिर आसन से उठकर सब सामग्री समेट कर परिक्रमा की तयारी करें
. प्रसाद को सभी मे बाँट दें
. ब्राह्मण य पंडितजी को दान दक्षिणा दें
(अगर कोई हो तो).
एक या एक से अधिक कन्याओं को कन्या पूजन करें , कुछ खिलाएं दान-
दक्षिणा देकर फिर पीछे न मुड़कर परिक्रमा शुरू करें.
14) परिक्रमा मे क्या चीजें
वर्जित है?
उ) धूम्रपान, मद्यपान, नशा, गांजा इत्यादि का सेवन, दुर्भाषा का प्रयोग, काम वांछा, क्रोध, लोभ आदी दुर्गुणोंका
वर्जित करना चाहिए। सदैव दैव चिंतन मे रहने की कोशिश करें।
15) खाने-पिने, पूजा कार्य मे क्या वर्जित
है?
उ) 1) प्याज, लशुन का सेवन न करें। अगर
कोई अनजान व्यक्ति या कोई गरीब श्रद्धालु व्यक्ति भोजन प्रसादी मे प्याज या लशुन
डालके अनजान मे देते है, तो आप माँ नर्मदाजीको समर्पित करके उसका सेवन
कर सकते है। क्योंके वह व्यक्ति अपने शक्ति के अनुसार भक्ति-श्रद्धा से कुछ भोजन
दिया है।
2) नारियल फोड़ना मना है, क्योंके माँ नर्मदा जी को
पूर्ण नारियल हम समर्पण करते है, इसलिए परिक्रमा वासी अपने
हाथों से नारियल न तोड़े। नारियल का सेवन भी मना है। अनिवार्य है या अगर किसी ने
नारियल के टुकड़े दिए तो उनको मना न करके बादमे कसीको देदेना है।
3) सर पे तेल नहीं लगाना है, नाख़ून नहीं काटना है (चाहे
तो पथ्थर पर घिसके समतुल कर सकते है), शेविंग नहीं करनी है, शैम्पू या साबुन का
इस्तेमाल नहीं करनी है । सबसे मुख्य नर्मदा जी मे नहाते समय घुटने तक पानी से ज्यादा
नीची नहीं जाना है,
उतने
पानी के अंदर ही नहाना है। आईने मे चेहरा नहीं देखना है । बालोंको कंघी नहीं करना
है,
सिर्फ
हाथ फेरलेना है ।
16) अगर कोई चाय, नास्ता या भोजन का प्रस्ताव करें तो क्या करें?
उ) अगर परिक्रमा के दौरान
कोई व्यक्ति आपको चाय , नास्ता या भोजन का प्रस्ताव करें, ओर उस वक्त आपका पेट भरा
है या कुछ लेने का मन नहीं है तो आप उस व्यक्ति से नम्र रूप से बोलदीजीए के आप अभी
प्रसाद पाएं है ,
या
आप उनके पास जाकर एक ग्लास पानी पीकर विदा लें। अगर उस समय यह चीजोंको ठुकराएंगे
तो उस पुरे दिन मे आपको खाने पीने की दिक्क्त रहेगी। यह मेरा स्वीय अनुभव भी है।
17) अगर परिक्रमा के दौरान
रस्ते मे कोई पैसे दे तो क्या करें?
उ) अगर आपको परिक्रमा के
दौरान रस्ते मे कोई व्यक्ति दान या दक्षिणा के रूप मे या चाय , नास्ता करने के लिए कुछ
पैसे दे,
तो
आप उसे मना न करें । अगर उस दिन पैसे ज्यादा लोग दे रहे है तो समझिए की उसदिन आपको
कहीं भोजन प्रसाद नहीं मिलेगी ओर माँ नर्मदा जी ने आपको खुदसे खानेका इंतजाम
करनेके लिए पैसे दे रहें है। अगर सब ठीक हुआ तो उन पेसो से टॉफी / चॉकलेट खरीदकर
रस्ते मे मिलने वाले बच्चों मे बाँट दीजिए।
18) अगर परिक्रमा के दौरान कोई
पॉव छुएं तो क्या करें?
उ) अगर परिक्रमा के दौरान
हमारे पॉव कोई छुएं तो हमें झुककर जमीन को छूंकर हाथ जोड़लेना चाहिए। क्योके
परिक्रमा के दौरान हमें किसीकी पॉव नहीं छूना है। सिर्फ देव-देवियोंके चरणस्पर्श
ही करना है। अगर कोई बड़े बुजर्ग या साधु संथ हो तो उनके पॉव छूं सकते है।
19) अगर दिन के ढलते समय कोई
हमें रुकने के लिए बोले तो क्या करें?
उ) अगर दिन के ढलते समय
कोई व्यक्ति परिक्रमा वासिओंको रुकने के लिए बोले, अगर वहां सब सुविधाएँ हो, तो मना न करें। वहां रुक
जाएं । अगर आपका मुकाम अलग है ओर आगे आपकी व्यवस्था हो, तभी आगे बढ़ें । वरना बिना
सोचे आगे बढ़ेंगे तो आपको आप जाने वाले जगह पर रुकने या खाने पिने की दुविधा होगी।
यह मेरा स्वीय अनुभव भी है।
20) कोई खेत या बगीचे मे खाने
लायक चीज हो ओर खानेका मन करे तो क्या करें?
उ) अगर परिक्रमा मार्ग मे
आप कोई खेत या बगीचे से गुजर रहें है ओर वहां खाने लायक चीज हो ओर आपको खानेका मन
करे तो आप वहां किसान के अनुमति लेकर ही कुछ तोड़े। अगर किसान या वहां के मालिक
आपके मांगे बिना खुद से आपको कुछ चीज दें तो आप ले सकते है।
21) जहाँ रहेंगे उन परिसरों मे
कैसे रहें?
उ) 1) सबसे मुख्या बात होती है
आप परिक्रमा मे एक सन्यासी रूप होते है। भले ही आप कितना कुछ सोचे लेकिन जो
व्यक्ति,
मंदिर, आश्रम या कुटी मे आप आश्रय
लेते है,
आप
उस दिन वहां के मेहमान होते है। कृपया वहां के परिस्थितिओंके अनुसार अपना स्वाभाव
रखें । वहां के नियमोंके अनुसार चलें। घरमे आपको भले ही दूध से भरा चाय मिले, पांच पकवान, रोटी, चावल मिले, लेकिन परिक्रमा मे जिस जगह
पर जो मिले उसे बिना रोक ठोक किए प्रसाद रूप से पा लेना है। आपको सेवा देने वाले
व्यक्ति की आर्थिक तथा उस समय की परिस्थिति को भी आपको देखना होगा, के वह बेचारा कहाँ से
लाएगा?
कितनोंको
खिलाएगा?
क्या-क्या
देगा सबको?
2)समय पर यानि करीब 8 बजे से 9 बजे रात्रि के अंदर
सोजाएं। दूसरोंको भी सोने दें। सब परिक्रमा वासी थके-हारे रहते है, तो कृपया आपको नींद न आए
तो जप करलें,
कोई
ग्रन्थ पढ़ लें,
लेकिन
बड़े आवाज मे बातें,
पढ़ना
या चिल्लाना न करें। अगर वहां के नियम से लाइट बंद करनी हो तो अपने पास रखे हुए
टार्च से आपका काम धाम करें।
3)सुबह जल्दी उठने का प्रयास
करें। कम से कम सुबह 5 से 6 के बीच उठकर, अपना बिस्तर उठालें, उस जगह को झाड़ू मारें, फिर उस जगह से नित्य कर्म
करने के लिए जाएं । क्योंके उस स्थान मे हमारा कोई नौकर साफ़ सफाई करने नहीं आएगा ।
4) नित्य कर्म के समय आप रहने
वाले परिसरों को गंदा न करें। मल-मूत्र यहाँ-वहां न त्यागें। इधर-उधर न थूंके। अगर
वहां टायलेट है,
तो
उसको साफ़ रखें। वरना वहां के परिसर मे रहने वालों को तथा आतिथ्य देने वालों को
परिक्रमा वासिओंके ऊपर प्रतिकूल भावना आता है ।
22) क्या परिक्रमा के दौरान
मंदिर की प्रदक्षिणा करना है?
उ) नर्मदा
परिक्रमा के दौरान हमें हर एक तीर्थ स्थल पर जाना है ! उस
क्षेत्र मे जलाभिषेक, नर्मदा मे स्नान करना, तिल, चावल, जल
का तर्पण करना है और एक माला का जाप करना है। विशेष रूप से अपने गुरु
द्वारा दिए गए मंत्र का जाप करें या यदि कोई विशेष मंत्र नहीं है तो केवल ॐ नमः
शिवाय या ॐ नमो नारायणाय या गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। इसका उल्लेख नर्मदा पुराण
मे विशेष रूप से उल्लेख है। हर तीर्थ स्थल का अपना-अपना महत्व होता है ! नर्मदा
नदी के तट पर जहां एक शिव लिंग है, भले ही वहां कोई मंदिर
नहीं है, लेकिन यह स्थान तीर्थ स्थल
का प्रतीक है। नर्मदा जी के साथ-साथ अन्य नदी के संगम का भी विशेष महत्व है।
परिक्रमा के दौरान हमें
कोई भी मंदिर की प्रदक्षिणा नहीं करनी है। क्योंके हम परिक्रमा मे है, ओर जब तक अपनी परिक्रमा
संपूर्ण नहीं होती है तब तक हमें मंदिर के चारोंओर परिक्रमा या प्रदक्षिणा नहीं
करनी है। हमें दोनों हाथों को जोड़कर अपने सर के ऊपर हाथोंको घुमालेना है।
23) परिक्रमा के दौरान किस
प्रकार के व्यक्ति मिलते है?
उ) प्रकिरमा के दौरान एक
से बढ़के एक अजीबो गरीब व्यक्तिओं से आपकी मुलाकात होती है। कुछ व्यक्ति स्वयं
घोसित भगवान मिलते है, कुछ ठग होते है, कुछ गांजडे - नसेड़ी , कुछ बोलबचन वाले , कुछ स्वार्थी, कुछ छल प्रवृति , कुछ संथ, कुछ साधु, कुछ अच्छे सेवक, कुछ भावुक- ऐसे नाना
प्रकार के व्यक्ति मिलते है। आपको किसीसे कोई मतलब नहीं रखना है। बस्स चलते जाना
है। आपका मकसद सिर्फ "मोह माया छोड़ो , नर्मदा जी से जुडो "
ही होना चाहिए। कोई किसी प्रकार के बातें बोलें या कितना भी प्रलोभन दिखाएं, आप अपने आपको संभालते हुए, जुबान सँभालते हुए ही बात
करें तो आपके लिए अच्छा होगा।
24) दिनमे कितना दूर चलना है?
उ) नर्मदा मैया जी का
प्रवाह की दुरी हे 1700
से 1800 किलोमीटर। इस प्रकार
परिक्रमा वासी को दोनों तटोंको मिलाकर कुल 3500 से 3600 किलोमीटर चलना होगा । आप
अगर दिन मे 15
किलोमीटर
चलसकते हैं तो कुल 235
दिन
मे आपकी परिक्रमा पूरी होगी। अगर दिन मे 20 किलोमीटर चलसकते हैं तो
कुल 175
से 180 दिनों के अंदर परिक्रमा
पूरी होगी। अगर दिन मे 30 किलोमीटर चलसकते हैं तो कुल 116 से 120 दिनों के अंदर परिक्रमा
पूरी होगी। और अगर आप दिन मे 40 किलोमीटर चलसकते हैं तो
कुल 85
से 90 दिन के अंदर आपकी परिक्रमा
पूरी होगी। (चातुर्मास, एक साल या तीन साल तीन महीने तेरह दिन वाले
परिक्रमा छोड़ कर)
सबसे मुख्य है आपको
परिक्रमा मे दुर्लभ और अद्भुत तीर्थ स्थलोंका दर्शन करते हुए जाना है। जितना हो
सके भागा-दौड़ी ,
दूसरोंके
साथ रेस लगाते हुए जाना छोड़ दीजिए। पूरी दृष्टि अपने सुविधा और अनुकूल जैसा माहौल
हो वैसे मे रहते हुए आपको जैसे अनुभव मिलते है उनके हिसाब से परिक्रमा करें। मैया
जी के किनारे बहुत सुन्दर धाम है, रमणीय स्थान है, सुंदर प्रकृति का नजारा
है। आप इनसब चीजोंका आनंद और आस्वासन लेते हुए परिक्रमा करेंगे तो दिन कितने जल्दी
बीत जाएगें आपको पता नहीं चलेगा। पर आप ध्यान रखें आप हर एक
तीर्थ स्थल के दर्शन करते हुए जाएं! वर्ना आप केवल रोड नाप कर
आएंगे !
25) परिक्रमा मे प्रसाद और
चॉकलेट या टॉफी का बांटना क्या है ?
उ) परिक्रमा मे सिर्फ
नर्मदे हर नाम से हम सब एक परिवार जैसे होजाते है। इस वजह से आप जहाँ भी बैठकर
पूजा करें,
अगर
आपकी पूजा ख़त्म होजाए तो आपके आस पास जो भी व्यक्ति, बच्चें हो तो उनसबको आपके
पास रहने वाले शक़्कर के दाने (चिरोंजी) या मूंगफली के दाने या आदी प्रसाद भले
एक-एक दाना भी हो,
सबको
देकर मिलबाँट के खाएं।
परिक्रमा के दौरान हम छोटे
गांव,
बस्ती, आदिवासी क्षेत्र से गुजरते
है। वहां तो बच्चोंको सही ढंग के आहार और रहन- सहन की व्यवस्था नहीं होती है। तो
वे परिक्रमा वासिओंके तरफ देखते रहते है, या दौड़ के पास आते है। तब
आप आपके पास ख़रीदे हुए कुछ चॉकलेट या टॉफ़ी उन बच्चों के हाथोंमे देंगे तो वे खुश
होजाएंगे। छोटी बालिकाएं दिखे तो जरूर उनके चरण स्पर्श करते हुए चॉकलेट या टॉफ़ी
देते जाना। नजाने किस रूप मे माँ नर्मदा आपको दर्शन दें या परीक्षा ले।
26) परिक्रमा के दौरान दक्षिण
तट मे शूलपाणी झाड़ी से जाएँ या शहादा, प्रकाशा होते हुए सड़क
मार्ग से जाएँ?
और
उत्तर तट मे मंडला के जंगल मार्ग से जाएं या निवास, शाहपुरा होते हुए सड़क
मार्ग से जाएँ?
उ) 1) परिक्रमा के दौरान अत्यंत दुर्लभ, सौंदर्य से भरा ओर कठिन
मार्ग है तो वो दक्षिण तट की शूलपाणी झाड़ी ओर उत्तर तट की मंडला जंगल मार्ग है।
बहुत से परिक्रमा वासी जब
दक्षिण तट के बड़वानी या राजघाट पहुंचते है, तो उन्हें बहुत लोग जिनमे
एक से अधिक बार परिक्रमा किए हुए अनुभवी परिक्रमा वासी भी कहते हैं की "यहाँ
से सड़क मार्ग से चलना है। झाड़ी का रास्ता सरदार सरोवर बाँध के बैकवाटर के कारण बंद
होगया है। ओर उस क्षेत्र मे लुटेरे रहते है, वे सब कुछ लूट लेते
हैं"।
मेरी मानिए यह सब कुछ अफवा
है। एक जमाना था,
तक्रीबन
20
साल
पहले जब यह जंगल मे भील आदिवासी निवास करते थे। उस समय उनका हालत बहुत खराब था। न
खानेको अच्छा खाना न पहनने को ढंग का कपड़ा था। वैसी अवस्था मे वे उस रस्ते से
गुजरने वाले हर परिक्रमा वासिको लूट कर खाना, कपड़े ,सामग्री इत्यादी लेजाते
थे। और उनको पूर्ण रूप से नग्न करके छोड़ देते थे। परिक्रमा वासी झाड़ी मे मिले
पत्तोंसे,
पेड़
के छालें या चावल या सिमेंट के बोरियोंसे अपना तन ओढ़कर महाराष्ट्र-गुजरात के तरफ
जैसे पहुंचते थे,
वहाँ
साधू-संथ तथा सहृदय व्यक्ती इन बिन कपडोंके परिक्रमा वासिओंको धोती, कपड़े वगैरा देकर उनको आगे
की ओर रास्ता बताते थे।
परंतू अब वैसा नहीँ है।
परम् पूज्य श्री लखनगिरी महराज जी ने इन भिलोंको सुधारनेके लिए शूलपाणी झाड़ी के
अंदर घोंगसा नामक स्थान मे एक कुटी बनाकर नर्मदा जी के पास तपस्या करने लगें। साथ
ही इन सरल आदिवासिओंको खाने पीने की चीजें देना, बीज वगेरा देकर गेहूं, अनाज, चने, आदी धान्य उगाना, उनसे उनका गुजारा करना
सिखाए हैं। बाद मे बहुत सहृदय व्यक्ती भी लखनगिरी बाबा को सहायता करने लगें। ओर
कुछ सालोंसे इस क्षेत्र में प्रशासन के तरफ से रोड, मकान इत्यादी बनना; आदिवासी बच्चों के पढ़ाई के
लिए नजदीकी शहरों मे व्यवस्था करना; युवकोंके लिए ट्रैक्टर
इत्यादी सहायता करके उनमें खेती करनेका होंसला बढ़ाना इत्यादी अनेक कार्य कर रही
है। अब उधरसे कोई भी परिक्रमा वासी गुजरता है, तो वो आदिवासी लोग ही उनके
अच्छी देखभाल करते है। थके हुए परिक्रमा वासिओंको खाना, पानी देते हैं। उनके
घरोंमें आश्रय देते है। कोई दिक्कत नहीँ आने देते है।
लखनिगिरी बाबाजी ब्रम्हलीन
होनेके बाद उनके शिष्य श्री नर्मदगिरी महराज जी घोंगसा के लखनगिरी बाबा आश्रम की
देखभाल कर रहे है। और साथ ही आदिवासिओंको राह दिखा रहे है। हमारे परिक्रमा के
दौरान हमने भी शूलपाणी झाड़ी से ही परिक्रमा किए है। बहुत सुंदर-सुंदर स्थान है, प्रकृति का नजारा ओर साथ
ही हम जो खुशी गाँव य शहर मे पा नहीँ सक्ते वो इस जंगल झाड़ी मे पा सकते है। आपको
कुछ आश्रम,
साधुकुटी, सेवकोंके घर भी इन झाड़ियों
मे मिल जाएगी। पैदल परिक्रमा वासिओंको इसी रास्ते से जाकर परिक्रमा करनी चाहिए।
पुराण के अनुसार पुराने
शूलपाणी मंदिर मे जो शिव लिंग है वो पाताल लोक तक विस्तार है। ओर जहां शिव जी का
साक्षात्कार के वहीँ माँ नर्मदा जी प्रसन्न होते है। शूलपाणी झाड़ी मैया जी के
अत्यंत प्रीतिपात्र जगह है। अमरकंटक से निकलने के कारण वह जगह (अमरकंटक) माँ
नर्मदा जी का मस्तक कहा जाता है, मंडला (माँ रेवा जी का मन
डला हुआ है,
ओर
यह दिल के आकार मे घुमाउदार ही आपको चित्र मे दिखेगा, इसलिए मंडला कहाजाता है)
माँ का हृदय है,
नेमावर
को नाभी क्षेत्र ,
शूलपाणी
झाड़ी माँ रेव का घुटना ओर टांगे ओर रेवा-सागर संगम माँ के चरणों के रूप का प्रतीक
है। शूलपाणी झाड़ी की लंबाई लगभग 200 किलोमीटर है, और आप 7 से 10 दिनोंके अंदर आराम से पार
कर सकतें है.
2) उसी प्रकार मंडला के मार्ग
मे जानेके समय भी परिक्रमा वासिओंको बोला जाता है इधर मत जाओ। बहुत घुमाऊदार ओर
जंगल मार्ग है। मैये जी बहुत मोढ़ लेकर चलीं है। खाने को कुछ नहीँ मिलता है। सबसे
मुख्य शाहपुरा के तरफ सड़क मार्ग से जानेसे आप 5 दिन कम समय मे अमरकंटक
पहुँच जाओगे,
ओर
मंडला से जाएंगे तो 5 दिन अधिक समय मे अमरकंटक पहुंचेंगे; इत्यादी-इत्यादी बोलकर
परिक्रमा वासिओंको निर्वीर्य कर देते है।
मेरी मानो तो पैदल
परिक्रमा वासिओंको जबलपुर के बाद “बरेला” से सीधे मंडला मार्ग से ही
जाना उत्तम है। बरेला से मंडला सहर तक आपको सड़क मार्ग है (बर्गी डेम के बैकवाटर के
कारण)। वो भी घने जंगल के बीच से जाती है। सुनसानी जंगल मे लंबे-लंबे बड़े पेड़ोंके
बिच मे,
पहाड़ोंके
ऊपर-नीचे होते हुए हाइवे बहुत सुंदर दीखता है फिर 2-4 जगहों पर माँ नर्मदा जी का
स्नान ,दर्शन मिल जाता है। मंडला
सहर के बाद आपको 10-15
किलो
मीटर के बाद से डिंडोरी तक सिर्फ जंगल मे माँ नर्मदा जी के सुंदर किनारे से जाना
पड़ता है। वहीं असली मजा भी है। माँ के रमणीय प्राकृतिक नजारें, मैया जी के मोढ़, सुद्ध- साफ- चंदन- तुलसी
जैसे सुभासित जल इनका आंनद सिर्फ नसीब वलोंको ही मिलता है।
यह मेरा स्वीयानुभव भी है।
मैंने परिक्रमा के दौरान इन दुर्लभ क्षेत्रों से ही गुजरा था। और कोई दिक्कत नहीँ
हुई है,
न
अब भी उन क्षेत्रों से जाने वलोंको हो रहा है। निर्णय आप पर है, कोनसे मार्ग से जाएंगे।
27) नाव से सागर पारी कब तक कर सकते है?
उ) आपको नाव से समुद्र पार
करके मिठीतलाई पहुँचने के लिए दक्षिण तट के गुजरात के विमलेश्वर गांव , मे जाना है। साधारण रूप से
अप्रिल महीने के बाद अरब सागर मे तूफान आना शुरू होजाता है। इसी वजह से अप्रैल
महीने के बाद नाव पार नहीं करवाते है। तो आप अपनी परिक्रमा नाव पार करने तक, अप्रेल के महीने तक नाव
पार करना है सोचकर ही यात्रा करें ।
28) नाव पार करते समय नियम
क्या है?
उ) नाव पार करने के लिए आप
जब विमलेश्वर मे नाव यात्रा करनेका रजिस्ट्रेशन करलेंगे (पैदल यात्री के लिए 150 से 200 रुपए ) , वे अफसर आपको नाव कब और कितने
बजे निकलेगा बता देंगे। जिस समय नाव चढनेके लिए आप निकलेंगे तब उस गांव के छोटी
कन्याएं सर पर जल से भरा कलश पकड़ कर सभी परिक्रमा वासिओंको आशीर्वाद देते दिखेंगे।
आपको उनके कलश मे कुछ पैसे डालकर उनके पाऊँ छू कर (माँ नर्मदा जी समझ कर) आगे बढ़ना
है। नाव के अंदर आपको जूते, चप्पल पहनना वर्जित है , तो आप कृपया अपने जूते, चप्पल को पहले से ही थैले
मे कहीं रखलें। नाव मे किसी प्रकार की विकृत चेष्टा न करें। सिर्फ मैया जी का
ध्यान करें ,
अविघ्न
रूप से सागर पार होजाएगा।
29) परिक्रमा के दौरान नर्मदा
जल कहाँ-कहाँ पर चढ़ाना पड़ता है?
उ) 1) आप परिक्रमा का संकल्प
लेते समय जो सीसी मे नर्मदा जल भरकर प्रतिदिन पूजा करते रहते है, उस जल को आप को सागर मे
थोड़ा डालना पड़ता है (नर्मदा-सागर संगम पार करते समय बोट वाला आपको बताएगा) और उसमे
फिरसे नर्मदा-सागर संगम जल भर लेना है।
2) अमरकंटक मे माई की बगिआ
जानेके बाद,
वहां
नर्मदा कुंड / नर्मदा उद्गम स्थल मे आपको फिरसे आपके सीसी के अंदर का नर्मदा जल
वहां कुंड मे थोड़ा डालना पड़ता है ( पुजारी जी आपको बताएंगे)।
3) परिक्र्मा आप जहाँ पहले
उठाए थे या प्रारम्भ किए थे, उस स्थल मे परिक्रमा
सम्पूर्ण होते ही कढ़ाई चढ़ा कर हलवा प्रसाद बना कर उसके साथ आपके सीसी के अंदर का
नर्मदा जल भी थोड़ा डालने के बाद आपकी परिक्रमा सम्पूर्ण होती है। लेकिन आप नर्मदा
जी को तभी पार कर सकते है, जब आप ओंकारेश्वर मे जाकर जल न चढ़ाएं।
ओंकारेश्वर मे नर्मदा जी
के आरती पूजा करनेके बाद आपको नर्मदा जी मे थोड़ा जल चढ़ाना है। फिर आपको नर्मदा जी
को पार करके ओंकारेश्वर मंदिर मे जाकर महादेव जी के ऊपर थोड़ा जल चढ़ाना है (दोपहर 12 बजे तक ही अभिषेक हो सकता
है),
फिर
मान्धाता पर्वत परिक्रमा करना है, उसी समय नर्मदा-कावेरी
संगम मे फिरसे थोड़ा सीसी का जल डाल के फिर से भरलेना है (पुराण के अनुसार
ओंकारेश्वर जी के माथे से गुप्त रूप से गंगा मैया निकल कर मंदिर के निचे से कावेरी
का नाम लेकर यही संगम मे नर्मदा जी से मिलती हैं , इस लिए इस स्थान मे भी
नर्मदा जल को चढ़ाना है)। इस के पश्चात मान्धाता पर्वत की प्रदक्षिणा होनेके बाद
दक्षिण तट मे ममलेश्वर मंदिर जाकर थोड़ा सीसी का जल महादेव जी के ऊपर डालने के बाद
आपका परिक्रमा संपूर्ण होजाता है।
बाद मे आप उस सीसी को अपने
घर लेजाकर पूजा स्थान मे नित्य पूजा करें।
30) क्या परिक्रमा करने के बाद हमें मोक्ष प्राप्ति होगी ?
उ) मोक्ष प्राप्ति की चाह हर प्राणि में रहता है। पर परिक्रमा करने के लिए आने वाले भक्तो मे एक वहम रहता है, परिक्रमा करते ही हमें मोक्ष मिल जाएगा क्या ?
मोक्ष प्राप्ति हमारे कर्मों के ऊपर निर्भर रहता है। हम जैसे जीवन जीते हे, हमारे कर्म भी उसी पर आधार होकर हमारे जीवन के मोड़ तय करते हैं। हम पुण्य किये हे या पाप ? मोक्ष के योग्य हे या नहीं। या हम खुद तय नहीं कर सकते, या कोई जातक चक्र नहीं बता सकता। पाप पुण्य कर्मों का निर्णय ईश्वर करता है। जब तक धरती पर हे हम सब अपने कर्मों से बंधे हुए हे !
मनुष्य जीवन जन्म और मरण के चक्र से बाहर निकलने का सबसे उत्तम अवसर होता है| जन्म और मरण के चक्र से मुक्त होने के कई मार्ग हैं| सनातन धर्म के लगभग सभी शास्त्र मनुष्यों को मुक्ति का मार्ग बताते हैं| श्रीमद भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने भी कई मार्गों का वर्णन किया है|
श्रीमद भगवत गीता के कुछ श्लोक इस प्रकार है:
* “कर्मणा प्राप्यते स्वर्गः सुखं दुःखं च भारत ।।“
अर्थ – हे भरतनंदन!
कोई मनुष्य अपने कर्मों के आधार पर ही दुःख, सुख तथा स्वर्ग को भोगता है|
* “नान्यः कर्तुः फलं राजन्नुपभुङ्क्ते कदाचन।।“
अर्थ – कोई भी व्यक्ति दुसरे व्यक्ति के कर्मों का फल भी भोक्ता है|
* “विषमांच दशां प्राप्तो देवान् गर्हति वै भृशम्।
आत्मनः कर्मदोषाणि न विजानात्यपण्डितः।“
अर्थ – मुर्ख मनुष्य जब संकट में पड़ता है तो भगवान को बहुत कोसता है| किन्तु वह ये बात नहीं समझता कि यह उसके कर्मों का ही फल है|
* “शुभैः प्रयोगैर्देवत्वं व्यामिश्रेर्मानुषो भवेत्।
मोहनीयैर्वियोनीषु त्वधोगामी च किल्विषी।।“
अर्थ – अच्छे कर्म करने से जीवात्मा को देव योनि की प्राप्ति होती है| जीव अच्छे तथा बुरे कर्म करने से मनुष्य योनि मे, मोह डालने वाले तामसिक कर्म करने से पशु – पक्षियों की योनियों व पाप कर्म करने से नरक में जाता है|
* “शयानं चानुशेते हि तिष्ठन्तं चानुतिष्ठति।
अनुधावति धावन्तं कर्म पूर्वकृतं नरम्।।“
अर्थ – मनुष्य का किया गया पूर्व कर्म उसके सोने के साथ ही सोता है, उठने के साथ ही उठता है तथा उसके दौड़ने पर साथ ही दौड़ता है| वह पीछा नहीं छोड़ता है|
* “किंचिद् दैवाद हठात् किंचिद् किंचिदेव स्वकर्मभिः।
प्राप्नुवन्ति नरा राजन्मा तेऽस्त्वन्या विचारणा।।“
अर्थ – राजन!
विवेकशील पुरुषों को कर्मों का कुछ फल अवश्य मिलता है| कुछ फल हठात प्राप्त होता है तथा कुछ कर्मों का फल अपने कर्मों से ही प्राप्त होता है|
* “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतु र्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि ।।“
अर्थ – इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते है – हे पार्थ!
कर्म करना तुम्हारा अधिकार है| कर्म के फल का अधिकार तुम्हारे पास नहीं है| इसलिए तुम फल की चिंता न करते हुए केवल कर्म करते रहो|
* “योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रिय:
।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते ॥“
अर्थ – जो भक्ति भाव से कर्म करता है, जो विशुद्ध आत्मा है तथा जिसने अपने मन व सभी इन्द्रियों को अपने वश मे कर लिया, वह सभी को प्रिय होता है व सभी लोग भी उसे बहुत प्रिय होते है| ऐसा व्यक्ति कर्म करता हुआ भी कर्म में नहीं बंधता है|
* “यत् कृतं स्याच्छुभं कर्मं पापं वा यदि वाश्नुते।
तस्माच्छुभानि कर्माणि कुर्याद् वा बुद्धिकर्भिः।।“
अर्थ – मनुष्य जो भी कर्म करता है, उनका फल उसे भोगना पड़ता है| इसलिए सभी मनुष्यों को बुद्धि, मन तथा शरीर से सदैव अच्छे कर्म करने चाहिए|
* “ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति य:
|
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा ||”
अर्थ – जो पुरुष अपने कर्म फलों को भगवान को समर्पित करके स्वयं आसक्तिरहित होकर अपना कर्म करता रहता है, वह पाप कर्मों से उसी भांति अप्रभावित रहता है, जिस प्रकार कमल पत्र जल से अस्पर्श रहता है|
* “कर्मणा वर्धते धर्मो यथा धर्मस्तथैव सः।।“
अर्थ – कर्म से भी धर्म बड़ा होता है इसलिए आप जैसा धर्म अपनाते है, आप भी वैसे ही हो जाते है|
भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद भगवत गीता मे २० गुणो का वर्णन किया है जिसका पालन करके कोई भी मनुष्य जीवन मे पूर्ण सुख और जीवन के बाद मोक्ष प्राप्त कर सकता है| जो मनुष्य सात्विक जीवन जीना चाहते है, अपने इन्द्रियों को वश में करना चाहते हैं, उन्हें चाहिये के इन गुणो मे से अधिक से अधिक गुणो को धारण करने का प्रयास करें:
श्रीमद भगवत गीता - अध्याय: 13: श्लोक: (8,9,10,11,12):
अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम्
।
आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः ॥
इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कावर एव च ।
जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम्
॥
असक्तिरनभिष्वङ्गा:
पुत्रदारगृहादिषु ।
नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु ॥
मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी ।
विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि ॥
अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्वज्ञानार्थदर्शनम्
।
एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा ॥
भावार्थ: विनम्रता, दम्भाचरण का अभाव, अहिंसा, क्षमाभाव, सरलता, गुरु की सेवा, शौच (आतंरिक एवं वाह्य शुद्धता), दृढ़ संकल्प, आत्मनिग्रह (मन को पवित्र रखना), वैराग्य (आसक्ति का अभाव), अहंकारहीनता (अहंकार से मुक्त), दोषारोपण न करना, समभाव (सभी जीवों को समान समझना), मोहरहित (भौतिक पदार्थों का मोह न रखना), समचित्त (सुख दुःख में समान व्यवहार), अटूट भक्ति, देशभक्ति, निरर्थक वार्तालाप मे लिप्त न होना, आध्यात्मिक, आत्मज्ञानी यह सब पवित्र गुण कहे गए हैं ! यह आचरण मनुष्यों के सबसे उत्तम आचरण हैं | इन आचरणों को धारण करके मनुष्य इस शरीर मे संपूर्ण सुख एवं शांति कों प्राप्त कर सकता है और शरीर त्यागने के बाद मोक्ष को प्राप्त हो सकता है|
यह सभी आचरणों का पालन कठिन हो सकता है, फिर भी हमे अधिक से अधिक इन आचरणों का पालन करना चाहिए | अगर हम सभी मनुष्य इन आचरणों में से कुछ का भी पालन करने मे सक्षम हो जाएँ तो हमारे दुखों का अंत हो सकता है| यह आचरण मनुष्यों के लिए मानक हैं| किसी भी भ्रम की स्थिति मे हमे इन मानक आचरणों का विचार करके हि अपने व्यवहार के निर्धारण करना चाहिए |
मांडव्य मुनि ने भी अपने बाल्यवस्था मे अज्ञानता के कारण किये हुए छोटे कर्म के कारण उनको शूल दंड से कष्ट भोगना पड़ा, सीता मैया को भी बाल्य काल मे पंछियों को जुदा करने के कारण आजीवन श्री राम जी से अधिक समय तक दुर ही रहना पड़ा ! एशे बहुत से कथाएं हे ! मनुष्य जो भी कर्म करता है, उनका फल उसे भोगना पड़ता है ! इसलिए सभी मनुष्यों को बुद्धि, मन तथा शरीर से सदैव अच्छे कर्म करने चाहिए ! एवं जीवन को कर्मों से मुक्त करने के लिए धर्माचरण करना ही पड़ेगा।
नर्मदा परिक्रमा धर्म एवं मोक्ष के लिए एक सीढी हे ! जेसे पौधा लगाकर हम उसकी देखभाल करते हैं तो वो हमें कभी ना कभी छाया और फल देगा ! उसी प्रकार नर्मदा परिक्रमा करके दान, धर्म, आध्यात्मिक कार्यों मे लिप्र रहने से हम बिना भटके मोक्ष के मार्ग के सीढी चढ़ते हैं। बाकी अपने आचरण या कर्म हमारे मोक्ष की दिशा निर्णय करते हैं।
कभी अच्छे शब्द नहीं बोले हो, कोई दान धर्म नहीं किये हो, हर प्राणि मे ईश्वर का दरजा ना देखे हो, मन मे मलिन रखते सिर्फ शब्दो मे मिठास रखे हो, दिखावे का जीवन जीये हो, झूठ,
छल, लोभ इत्यादी से जीवन , व्यापार,
कमाई इत्यादि करते हुए हम कितने दूर तक मोक्ष प्राप्ति कर सकते हैं वह आप खुद ही तय करें।
मेरा उद्देष्य किसिको भयभीत करना नहीं हे। परंतु आपको सही मार्ग दिखाना है। मोक्ष कोई मिठाई नहीं जो भाग के हासिल करलो । वो एक साधना है जो निरंतर प्रयास से ही, ईश्वर या धर्म पर लगन रखने से ही प्राप्त होगी !
31) नर्मदा परिक्रमा मे सबसे मुख्य संकल्प क्या लें ?
उ) माँ नर्मदा सिर्फ नदी नहीं जीवन दायिनी, लोक हित कारिणी हे
. आज-कल प्रदूषण के कारण नर्मदा जी का जल और आस पास के पर्यावरण दूषित हो रही हे.
मातृरक्षा सेवा संघटन , ओंकारेश्वर और कई ऐसे सेवक नर्मदा जी को साफ़ और स्वच्छ रखने के लिए निरंतर श्रम कर रहें हे , लोगों मे जागरूकता लानेका प्रयाश कर रहे हैं ! यह बात नर्मदा किनारे सब जगह नहीं पहुंच पाती हे ! यह सिर्फ परिक्रमा वासिओं के संकल्प से ही संभव हो सकता हे !
सभी परिक्रमावासी परिक्रमा के दौरान यह संकल्प लें की वे नर्मदा किनारों मे स्वच्छता और प्रदूषण मुक्त करने की वार्ता सभी स्थानों मे फैलाएं -
1) अतैव आप सब नर्मदा जी मे वस्त्र न छोड़ें, जिस से जल जीवों को बहुत हानि पहुंच रहा हे, जल प्रदूषित हो रहा हे-
बल्कि उन वस्त्रों को मैया मे थोड़ा भिगोकर किसी गरीब को पहनने को देदें
.
2) नमर्दा जी मे साबुन, शेम्पू, केमिकल का इस्तेमाल न करें, कूड़ा कचरा न फेंके .
3) नर्मदा किनारे शौच न करे और शौचालयों का निर्माण न करें
. किनारे से दूर सेप्टिक टेंक बनाकर शौचालय बनाये
. गंदगी नर्मदा जी मे न छोड़ें
.
4) प्लास्टिक का इस्तेमाल न करें
. नर्मदा जी मे प्लॅस्टिक के पन्नी, दोने , पत्तल इत्यादि न फेंके
. आटेका दीपक जलाकर छोड़ें ताकि जलचर जीवोंको खाना भी मिलजाए
.
5) परिक्रमा मे कोई भी जगह प्लास्टिक के थाली, प्लेट इस्तेमाल न करें, खुद के स्टील , ताम्बे य पीतल के बर्तन मे भोजन करे.
6) नर्मदा किनारे वृक्ष लगाएं ! एक एक परिक्रमावासी परिक्रमा के दौरान एक दिन एक वृक्ष भी लगाते जाएं तो दोनों तटों मे एक साल मे हरियाली आएगी , और प्रदूषण कम होगा
.
7) अन्य कोई भी कार्य जो पर्यावरण और नर्मदा जी के हित हो वो सब करें
.
सबसे मुख्य बात कोई भी कार्य किसी को कहने से ज्यादा हम करेंगे तो हमें देख चार व्यक्ति आगे बढ़ेंगे.
परिक्रमा के दौरान दुर्लभ ग्रामीण क्षेत्र से गुजरते हे, हम लोगोंके साथ मिलकर स्वच्छता का कार्य करते जाएंगे तो लोग भी धीरे धीरे बदलेंगे और नर्मदा जी भी हमेशा स्वच्छ और सुन्दर रहेंगी.
नर्मदे हर ... जिंदगी भर ... सबका भला कर
आशा करता
हूँ आपको
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(रवि कुमार)
(9338796186)
नर्मदेहर.. परिकम्मा वासी के उपयुक्त 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
ReplyDeleteधन्यवाद महराज जी
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